Monday 9 November 2015

वासना की अग्नि Vasna Ki Aag

प्रगति का जन्म तमिलनाडू के एक गरीब परिवार में हुआ था। उसके पिता बागवानी का काम करते थे और माँ घरों में काम करती थी। प्रगति की दो छोटी बहनें थी जो उससे 3 साल और 5 साल छोटी थी। प्रगति इस समय करीब 18 साल की थी और उसका ज़्यादा समय अपनी बहनों की देखभाल में जाता था क्योंकि उसके माता पिता बाहर काम करते थे। प्रगति स्कूल भी जाती थी। ज्यादातर देखा गया है कि समाज के बुरे लोगों की नज़र गरीब घरों की कमसिन लड़कियों पर होती है। वे सोचते हैं कि गरीब लड़की की कोई आकांक्षा ही नहीं होती और वे उसके साथ मनमर्ज़ी कर सकते हैं। प्रगति जैसे जैसे बड़ी हो रही थी, आस पास के लड़कों और आदमियों की उस पर नज़र पड़ रही थी। वे उसको तंग करने और छूने का मौका ढूँढ़ते रहते थे। प्रगति शर्म के मारे अपने माँ बाप को कुछ नहीं कह पाती थी।

एक दिन स्कूल में जब वह फीस भर रही थी, तो मास्टरजी ने उसे अकेले में ले जाकर कहा कि अगर वह चाहे तो वे उसकी फीस माफ़ करवा सकते हैं। प्रगति खुश हो गई और मास्टरजी को धन्यवाद देते हुए बोली कि इससे उसके पिताजी को बहुत राहत मिलेगी। मास्टरजी ने कहा पर इसके लिए उसे कुछ करना होगा। प्रगति प्रश्न मुद्रा में मास्टरजी की तरफ देखने लगी तो मास्टरजी ने उसे स्कूल के बाद अपने घर आने के लिए कहा और बोला कि वहीं पर सब समझा देंगे।

चलते चलते मास्टरजी ने प्रगति को आगाह किया कि इस बारे में किसी और को न बताये नहीं तो बाकी बच्चे भी फीस माफ़ करवाना चाहेंगे !! प्रगति समझ गई और किसी को न बताने का आश्वासन दे दिया। मास्टरजी क्लास में प्रगति पर ज्यादा ध्यान दे रहे थे और उसकी पढ़ाई की तारीफ़ भी कर रहे थे। प्रगति मास्टरजी से खुश थी। जब स्कूल की घंटी बजी तो मास्टरजी ने उसे आँख से इशारा किया और अपने घर को चल दिए। प्रगति भी अपना बस्ता घर में छोड़ कर और अपनी बहन को बता कर कि वह पढ़ने जा रही है, मास्टरजी के घर को चल दी।

मास्टरजी घर में अकेले ही थे, प्रगति को देख कर खुश हो गए और उसकी पढ़ाई की तारीफ़ करने लगे। प्रगति अपनी तारीफ़ सुन कर खुश हो गई और मुस्कराने लगी। मास्टरजी ने उसे सोफे पर अपने पास बैठने को कहा और उसके परिवार वालों के बारे में पूछने लगे। इधर उधर की बातों के बाद उन्होंने प्रगति को कुछ ठंडा पीने को दिया और कहा कि वह अगर इसी तरह मेहनत करती रहेगी और अपने मास्टरजी को खुश रखेगी तो उसके बहुत अच्छे नंबर आयेंगे और वह आगे चलकर बहुत नाम कमाएगी। प्रगति को यह सब अच्छा लग रहा था और उसने मास्टरजी को बोला कि वह उनकी उम्मीदों पर खरा उतरेगी !! मास्टरजी ने उसके सर पर हाथ रखा और प्यार से उसकी पीठ सहलाने लगे। मास्टरजी ने प्रगति को हाथ दिखाने को कहा और उसके हाथ अपनी गोदी में लेकर मानो उसका भविष्य देखने लगे। प्रगति बेचारी को क्या पता था कि उसका भविष्य अँधेरे की तरफ जा रहा है !

हाथ देखते देखते मास्टरजी अपनी ऊँगली जगह जगह पर उसकी हथेली के बीच में लगा रहे थे और उस भोली लड़की को उसके भविष्य के बारे में मन गढ़ंत बातें बता रहे थे। उसे राजकुमार सा वर मिलेगा, अमीर घर में शादी होगी वगैरह वगैरह !!

दोनों हाथ अच्छी तरह देखने के बाद उन्होंने उसकी बाहों को इस तरह देखना शुरू किया मानो वहां भी कोई रेखाएं हैं। उसके कुर्ते की बाजुओं को ऊपर कर दिया जिससे पूरी बाहों को पढ़ सकें। मास्टरजी थोड़ी थोड़ी देर में कुछ न कुछ ऐसा बोल देते जैसे कि वे कुछ पढ़ कर बोल रहे हों। अब उन्होंने प्रगति को अपनी टाँगें सोफे के ऊपर रखने को कहा और उसके तलवे पढ़ने लगे। यहाँ वहां उसके पांव और तलवों पर हाथ और ऊँगली का ज़ोर लगाने लगे जिससे प्रगति को गुदगुदी होने लगती। वह अजीब कौतूहल से अपना सुन्दर भविष्य सुन रही थी तथा गुदगुदी का मज़ा भी ले रही थी। जिस तरह मास्टरजी ने उसके कुर्ते की बाजुएँ ऊपर कर दी थी ठीक उसी प्रकार उन्होंने बिना हिचक के प्रगति की सलवार भी ऊपर को चढ़ा दी और रेखाएं ढूँढने लगे। उसके सुन्दर भविष्य की कोई न कोई बात वे बोलते जा रहे थे।

अचानक उन्होंने प्रगति से पूछा कि क्या वह वाकई में अपना और अपने परिवार वालों का संपूर्ण भविष्य जानना चाहती है? अगर हाँ, तो इसके लिए उसे अपनी पीठ और पेट दिखाने होंगे। प्रगति समझ नहीं पाई कि क्या करे तो मास्टरजी बोले कि गुरु तो पिता सामान होता है और पिता से शर्म कैसी? तो प्रगति मान गई और अपना कुर्ता ऊपर कर लिया। मास्टरजी ने कहा इस मुद्रा में तो तुम्हारे हाथ थक जायेंगे, बेहतर होगा कि कुर्ता उतार ही दो। यह कहते हुए उन्होंने उसका कुर्ता उतारना शुरू कर दिया। प्रगति कुछ कहती इससे पहले ही उसका कुर्ता उतर चुका था।
प्रगति ने कुर्ते के नीचे ब्रा पहन रखी थी। मास्टरजी ने उसे सोफे पर उल्टा लेटने को कहा और उसके पास आकर बैठ गए। उनके बैठने से सोफा उनकी तरफ झुक गया जिससे प्रगति सरक कर उनके समीप आ गई। उसका मुँह सोफे के अन्दर था और शर्म के मारे उसने अपनी आँखों को अपने हाथों से ढक लिया था। पर मास्टरजी ने उसकी पीठ पर अपनी एक ऊँगली से कोई नक्शा सा बनाया मानो कोई हिसाब कर रहे हों या कोई रेखाचित्र खींच रहे हों। ऐसा करते हुए वे बार बार ऊँगली को उसकी ब्रा के हुक के टकरा रहे थे मानो ब्रा का फीता उनको कोई बाधा पहुंचा रहा था। उन्होंने आखिर प्रगति को बोला कि वे एक मंत्र उसकी पीठ पर लिख रहे हैं जिससे उसके परिवार की सेहत अच्छी रहेगी और उसे भी लाभ होगा। यह कहते हुए उन्होंने उसकी ब्रा का हुक खोल दिया। प्रगति घबरा कर उठने लगी तो मास्टरजी ने उसे दबा दिया और बोले घबराने और शरमाने की कोई बात नहीं है। यहाँ पर तुम बिल्कुल सुरक्षित हो !!

उस गाँव में बहुत कम लोगों को पता था कि मास्टरजी, यहाँ आने से पहले, आंध्र प्रदेश के ओंगोल शहर में शिक्षक थे और वहां से उन्हें बच्चों के साथ यौन शोषण के आरोप के कारण निकाल दिया था। इस आरोप के कारण उनकी सगाई भी टूट गई थी और उनके घरवालों तथा दोस्तों ने उनसे मुँह मोड़ लिया था। अब वे अकेले रह गए थे। उन्होंने अपना प्रांत छोड़ कर तमिलनाडु में नौकरी कर ली थी जहाँ उनके पिछले जीवन के बारे में कोई नहीं जानता था। उन्हें यह भी पता था कि उन्हें होशियारी से काम करना होगा वरना न केवल नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा, हो सकता है जेल भी जाना पड़ जाये।
उन्होंने प्रगति की पीठ पर प्यार से हाथ फेरते हुए उसे सांत्वना दी कि वे उसकी मर्ज़ी के खिलाफ कुछ नहीं करेंगे। अचानक, मास्टरजी चोंकने का नाटक करते हुए बोले,”तुम्हारी पीठ पर यह सफ़ेद दाग कब से हैं?”

प्रगति ने पूछा,”कौन से दाग?”

तो मास्टरजी ने पीठ पर 2-3 जगह ऊँगली लगाते हुए बोला,” यहाँ यहाँ पर !” फिर 1-2 जगह और बता दी।

प्रगति को यह नहीं पता था, बोली,”मुझे नहीं मालूम मास्टरजी, कैसे दाग हैं?”

मास्टरजी ने चिंता जताते हुए कहा,”यह तो आगे चल कर नुकसान कर सकते हैं और पूरे शरीर पर फैल सकते हैं। इनका इलाज करना होगा।”

प्रगति ने पूछा,”क्या करना होगा?”

मास्टरजी ने बोला,”घबराने की बात नहीं है। मेरे पास एक आयुर्वैदिक तेल है जिसको पूरे शरीर पर कुछ दिन लगाने से ठीक हो जायेगा। मेरे परिवार में भी 1-2 जनों को था। इस तेल से वे ठीक हो गए। अगर तुम चाहो तो मैं लगा दूं।”

प्रगति सोच में पड़ गई कि क्या करे। उसका असमंजस दूर करने के लिए मास्टरजी ने सुझाव दिया कि बेहतर होगा यह बात कम से कम लोगों को पता चले वरना लोग इसे छूत की बीमारी समझ कर तुम्हारे परिवार को गाँव से बाहर निकाल देंगे। फिर थोड़ी देर बाद खुद ही बोले कि तुम्हारा इलाज मैं यहाँ पर ही कर दूंगा। तुम अगले ७ दिनों तक स्कूल के बाद यहाँ आ जाना। यहीं पर तेल की मालिश कर दूंगा और उसके बाद स्नान करके अपने घर चले जाया करना। किसी को पता नहीं चलेगा और तुम्हारे यह दाग भी चले जायेंगे। क्या कहती हो?

बेचारी प्रगति क्या कहती। वह तो मास्टरजी के बुने जाल में फँस चुकी थी। घरवालों को गाँव से निकलवाने के डर से उसने हामी भर दी। मास्टरजी अन्दर ही अन्दर मुस्करा रहे थे।

मास्टरजी ने कहा, “नेक काम में देरी नहीं करनी चाहिए। अभी शुरू कर देते हैं !”

वे उठ कर अन्दर के कमरे में चले गए और वहां से एक गद्दा और दो चादर ले आये। गद्दे और एक चादर को फर्श पर बिछा दिया और दूसरी चादर प्रगति को देते हुए बोले,”मैं यहाँ से जाता हूँ, तुम कपड़े उतार कर इस गद्दे पर उल्टी लेट जाओ और अपने आप को इस चादर से ढक लो।” जब तुम तैयार हो जाओ तो मुझे बुला लेना। प्रगति को यह ठीक लगा और उसने सिर हिला कर हाँ कर दी। मास्टरजी फट से दूसरे कमरे में चले गए।

उनके जाने के थोड़ी देर बाद प्रगति ने इधर उधर देखा और सोफे से उठ खड़ी हुई। उसने कभी भी अपने कपड़े किसी और घर में नहीं उतारे थे इसलिए बहुत संकोच हो रहा था। पर क्या करती। धीरे धीरे हिम्मत करके कपड़े उतारने शुरू किये और सिर्फ चड्डी में गद्दे पर उल्टा लेट गई और अपने ऊपर चादर ले ली। थोड़ी देर बाद उसने मास्टरजी को आवाज़ दी कि वह तैयार है।
मास्टरजी अन्दर आ गये और गद्दे के पास एक तेल से भरी कटोरी रख दी। वे सिर्फ निकर पहन कर आये थे। कदाचित् तेल से अपने कपड़े ख़राब नहीं करना चाहते थे। उन्होंने धीरे से प्रगति के ऊपर रखी चादर सिर की तरफ से हटा कर उसे पीठ तक उघाड़ दिया। प्रगति पहली बार किसी आदमी के सामने इस तरह लेटी थी। उसे बहुत अटपटा लग रहा था। उसने अपने स्तन अपनी बाहों में अच्छी तरह अन्दर कर लिए और आँखें मींच लीं। उसका शरीर अकड़ सा रहा था और मांस पेशियाँ तनाव में थी। मास्टरजी ने सिर पर हाथ फेर कर उसे आराम से लेटने और शरीर को ढीला छोड़ने को कहा। प्रगति जितना कर सकती थी किया। पर वह एक अनजान सफ़र पर जा रही थी और उसके शरीर के एक एक हिस्से को एक अजीब अहसास हो रहा था।

मास्टरजी ने कुछ देर उसकी पीठ पर हाथ फेरा और फिर दोनों हाथों में तेल लेकर उसकी पीठ पर लगाने लगे। ठंडे तेल के स्पर्श से प्रगति को सिरहन सी हुई और उसके रोंगटे खड़े हो गए। पर मास्टरजी के हाथों ने रोंगटों को दबाते हुए मालिश करना शुरू कर दिया। शुरुआत उन्होंने कन्धों से की और प्रगति के कन्धों की अच्छे से गुन्दाई करने लगे । प्रगति की तनी हुई मांस पेशियाँ धीरे धीरे आराम महसूस करने लगीं और वह खुद भी थोड़ी निश्चिंत होने लगी। धीरे धीरे मास्टरजी ने कन्धों से नीचे आना शुरू किया। पीठ के बीचों बीच रीढ़ की हड्डी पर अपने अंगूठों से मसाज किया तो प्रगति को बहुत अच्छा लगा। अब वे पीठ के बीच से बाहर के तरफ हाथ चलाने लगे। पीठ के दोनों तरफ प्रगति की बाजुएँ थीं जिनसे उसने अपने स्तन छुपाए हुए थे। मास्टरजी ने धीरे से उसके दोनों बाजू थोड़ा खोल दिए जिस से वे उसकी पीठ के दोनों किनारों तक मालिश कर। सकें। मास्टरजी ने तेल की कटोरी अपने पास खींच ली और प्रगति की पीठ के ऊपर दोनों तरफ टांगें कर के उसके ऊपर आ गए। इस तरह वे पीठ पर अच्छी तरह जोर लगा कर मालिश कर सकते थे।

प्रगति के नितंब अभी भी चादर से ढके थे। मास्टरजी के हाथ रह रह कर प्रगति के स्तनोंके किनारों को छू जाते। पर वह इस तरह मालिश कर रहे थे मानो उन्हें प्रगति के शरीर से कुछ लेना देना न हो। उधर प्रगति को अपने स्तनों के आस पास के स्पर्श से रोमांच हो रहा था। वह आनंद ले रही थी। यही कारण था कि उसके बाजू स्वतः ही थोड़ा और खुल गए जिस से मास्टरजी के हाथों को और आज़ादी मिल गई। मास्टरजी पुराने पापी थे और इस तरह के इशारे भांप जाते थे सो उन्होंने अपनी मालिश का घेरा थोड़ा और बढ़ाया। दोनों तरफ उनके हाथ प्रगति के स्तनों को छूते और नीचे की तरफ नितंबों तक जाते।

प्रगति के इस छोटे से प्रोत्साहन से मास्टरजी में और जोश आया और वे उसकी पीठ पर ऊपर से नीचे तक और दायें से बाएं तक मालिश करने लगे। कभी कभी उनकी निकर प्रगति के चादर से ढके नितंब को छू जाती। प्रगति की तरफ से कोई आपत्ति नहीं होते देख मास्टरजी ने उसके नितंब को थोड़ा और ज़ोर से छूना शुरू कर दिया। जिस तरह एक पहलवान दंड पेलता है कुछ उसी तरह मास्टरजी प्रगति के ऊपर घुटनों के बल बैठ कर उसकी पीठ पेल रहे थे। कभी कभी उनका लिंग, जो कि इस प्रक्रिया के कारण उठ खड़ा था, निकर के अन्दर से ही प्रगति के चूतडों को छू जाता था। प्रगति आखिर जवानी की दहलीज पर कदम रखने वाली एक लड़की थी, उसके मन को न सही पर तन को तो यह सब अच्छा ही लग रहा था।
अब मास्टरजी ने पीठ से अपना ध्यान नीचे की तरफ किया। पर नितम्बों की तरफ जाने के बजाय वे प्रगति के पाँव की तरफ आ गए। उन्होंने प्रगति के ऊपरी शरीर को चादर से फिर से ढक दिया और पाँव की तरफ से घुटनों तक उघाड़ दिया। इससे प्रगति को दुगनी राहत मिली। एक तो ठंडी पीठ पर चादर की गरमाई और दूसरे उसे डर था कहीं मास्टरजी उसकी मजबूरी का फ़ायदा न उठा लें। मास्टरजी को मन ही मन वह एक अच्छा इंसान मानने लगी। उधर मास्टरजी, लम्बी दौड़ की तैयारी में लगे थे। वे नहीं चाहते थे कि प्रगति आज के बाद दोबारा उनके घर लौट कर ही न आये। इसलिए बहुत अहतियात से काम ले रहे थे। हालाँकि उनका लिंग बेकाबू हो रहा था। इसी लिए उन्होंने निकर के नीचे चड्डी के बजाय लंगोट बाँध रखी थी जिसमें उनके लिंग का विराट रूप समेटा हुआ था। वरना अब तक तो प्रगति को कभी का उसका कठोर स्पर्श हो गया होता।
मास्टरजी ने प्रगति के तलवों पर तेल लगा कर मालिश शुरू की तो प्रगति यकायक उठ गई और बोली, “यह आप क्या कर रहे हैं?”

ऐसा करने से प्रगति के नंगे स्तन मास्टरजी के सामने आ गए। हड़बड़ा कर उसने जल्दी से अपने आपको हाथों से ढक लिया। पर मास्टरजी को दर्शन तो हो ही गए थे। मास्टरजी के लिंग ने ज़ोर से अंगड़ाई ली और अपने आपको लंगोट की बंदिश से बाहर निकालने की बेकार कोशिश करने लगा। प्रगति के स्तन छोटे पर गोलाकार और गठे हुए थे। अभी इन्हें और विकसित होना था पर किसी मर्द को लालायित करने के लिए अभी भी काफी थे। इस छोटी सी झलक से ही मास्टरजी के मन में वासना का अपार तूफ़ान उठ गया पर वे दूध के जले हुए थे। इस छाछ को फूँक फूँक कर पीना चाहते थे। उन्होंने दर्शाया मानो कुछ देखा ही न हो। बोले, “प्रगति यह तुम्हारे उपचार की क्रिया है। इसमें तुम्हे संकोच नहीं होना चाहिए। तुम मुझे मास्टरजी के रूप में नहीं बल्कि एक चिकित्सक के रूप में देखो। एक ऐसा चिकित्सक जो कि तुम्हारा हितैषी और दोस्त है। अब लेट जाओ और मुझे मेरा काम करने दो वरना तुम्हें घर लौटने में देर हो जायेगी।”

प्रगति संकोच में थी फिर भी लेट गई। किसी के सामने नंगेपन का अहसास एक मानसिक लक्ष्मण रेखा की तरह होता है। बस एक बार ही इसकी सीमा पार करनी होती है। उसके बाद उस व्यक्ति के सामने नंगापन नंगापन नहीं लगता। प्रगति को अपने ऊपर शर्म आ रही थी कि अपनी बेवकूफी के कारण उसने अपने आप को मास्टरजी के सामने नंगा कर दिया था। यह तो अच्छा है, उसने सोचा, कि मास्टरजी एक अच्छे इंसान हैं और बुरी नज़र नहीं रखते। कोई और तो उसे दबोच देता। यह सोच कर प्रगति सहम गई।
उधर मास्टरजी ने तलवों के बाद प्रगति की दोनों टांगों की पिंडलियों को दबाना शुरू किया। प्रगति को लगा मानो उसकी सालों की थकान दूर हो रही थी। उसे ऐसा अनुभव कभी नहीं हुआ था। किसी ने कभी इस तरह उसकी सेवा नहीं की थी। वह मास्टरजी की कृतज्ञ हो रही थी। तो जब मास्टरजी ने उसकी टांगें थोड़ी और खोलने की कोशिश की तो प्रगति ने उनका सहयोग करते हुए अच्छी तरह अपनी टांगें खोल दीं। मास्टरजी अब पिंडलियों से प्रगति करते हुए घुटने और जांघों तक आ गए। अच्छे से तेल लगा कर हाथ चला रहे थे जिस से हाथ में खूब फिसलन हो और वे “गलती से” इधर उधर छू लें। अब प्रगति अपनी मालिश करवाने में पूरी तरह लीन थी। उसे बहुत मज़ा आ रहा था। प्रगति के ऊपर रखी चादर उसके नितंब तक उघड़ गई थी।

मास्टरजी ने अब देखा कि प्रगति पूरी नंगी नहीं है और उसने चड्डी पहन रखी है। मन ही मन उन्हें गुस्सा आया पर गुस्सा दबा कर प्यार से बोले,”तुम्हें यह चड्डी भी उतारनी होगी नहीं तो शरीर के ज़रूरी भाग इस उपचार से वंचित रह जायेंगे। बाद में तुम्हें पछतावा हो सकता है। लेकिन अगर तुम्हें संकोच है तो जैसा तुम ठीक समझो !!”

मास्टरजी ने अपना तीर छोड़ दिया था और वे आशा कर रहे थे कि प्रगति उनके जाल में फँस जायेगी। ऐसा ही हुआ।

प्रगति ने कहा,” मास्टरजी, जैसा आप ठीक समझें !!”

तो मास्टरजी ने उसको चादर से ढक दिया और कमरे के बाहर यह कहते हुए चले गए कि वे बाथरूम हो कर आते हैं। तब तक प्रगति चड्डी उतार कर लेट जाये।

मास्टरजी को थोड़ा समय वैसे भी चाहिए था क्योंकि उनका भाला अपनी क़ैद से मुक्त होना चाहता था। इतनी देर से वह अपने आप को संभाले हुए था। मास्टरजी को डर था कहीं ज्वालामुखी लंगोट में ही न फट जाए। बाथरूम में जाकर मास्टरजी ने अपनी लंगोट खोली और अपने लिंग को आजाद किया। इससे उन्हें बहुत राहत मिली क्योंकि उनके लिंग में हल्का सा दर्द होने लगा था। उसके अन्दर का लावा बाहर आने को तड़प रहा था। इतनी कमसिन और प्यारी लड़की के इतना नजदीक होने के कारण उनका लंड अति उत्तेजित था और कुछ न कर पाने के कारण बहुत विवश महसूस कर रहा था। उसके लावे को छुटकारा चाहिए था। मास्टरजी ने इसी में भलाई समझी कि अपने लिंग को शांत करके ही प्रगति के पास जाना चाहिए। वरना करे कराये पर पानी फिर सकता है। यह सोच उन्होंने अपने लंड को तेल युक्त हाथ में लिया और प्रगति के स्तनों का स्मरण कर मैथुन करने लगे। लिंगराज तो पहले से ही उत्तेजित थे, थोड़ी सी देर ही में चरमोत्कर्ष को पा गए। मास्टरजी ने सोचा अब लंगोट की क्या ज़रुरत सो सिर्फ निकर ही पहन कर बाहर आ गए।
वहां प्रगति चड्डी उतार कर चादर के नीचे लेटी हुई थी। चड्डी में थोड़ा गीलापन था सो उसने चड्डी को गद्दे के नीचे छुपा दिया।

मास्टरजी ने जहाँ छोड़ा था वहीं से आगे मसाज शुरू किया। चादर को पाँव की तरफ से ऊपर लपेट कर प्रगति की जांघों तक उठा दिया और उसकी टांगें अच्छे से खोल दीं क्योंकि प्रगति अब नंगी थी, टांगें खुलने से उसे शर्म आ रही थी सो उसने अपनी टांगें थोड़ी सी बंद कर लीं। मास्टरजी ने कुछ नहीं कहा और पीछे से घुटनों और जांघों पर तेल लगाने लगे। उनके हाथ धीरे धीरे ऊपर की तरफ जाने लगे और चूतडों पर पहुँच गए। मास्टरजी प्रगति की टांगों के बीच वज्रासन में बैठ गए और प्रगति के घुटने से ऊपर की टांगों की मालिश करने लगे। चादर को उन्होंने उसकी पीठ तक उघाड़ दिया और वह उलटी, नंगी और असहाय उनके सामने लेटी हुई थी। मास्टरजी अपने जीवन में सिर्फ लड़कियां ही नहीं लड़कों का यौन शोषण भी कर चुके थे सो उन्हें गांड से बेहद प्यार था और उन्हें गांड मारने में मज़ा भी ज्यादा आता था। इस अवस्था में प्रगति की कुंवारी गांड को देख कर मास्टरजी की लार टपकने लगी। उनका मन कर रहा था इसी वक़्त वे प्रगति की गांड भेद दें पर अपने ही इरादे से मजबूर थे।

उनके हाथ प्रगति के चूतडों पर सरपट फिर रहे थे। रह रह कर उनकी उंगलियाँ चूतडों के पाट के बीच चली जातीं। जब ऐसा होता, प्रगति हिल हिल कर आपत्ति जताती। वज्रासन से थक कर मास्टरजी अपने घुटनों के बल बैठ गए और मालिश जारी रखी। उनकी उंगलियाँ प्रगति की योनि के द्वार तक दस्तक देने लगीं। ऐसे में भी प्रगति हिलडुल कर मनाही कर देती।

अब मास्टरजी ने प्रगति के ऊपर से पूरी चादर हटा दी और मालिश का वार पिंडलियों से लेकर पीठ और कन्धों तक करने लगे। जब वे आगे को जाते तो उनकी निकर प्रगति के चूतडों से छू जाती।

हालाँकि मास्टरजी एक बार लिंगराज को राहत दिला चुके थे और आम तौर पर उनका लंड एक दो घंटे के विश्राम के बाद ही दुबारा तैयार होता था, इसी विश्वास पर तो उन्होंने लंगोट उतार दी थी। पर आज आम हालात नहीं थे। लिंगराज के लिए कठिन समय था। उनके सामने एक अत्यंत कामुक और आकर्षक लड़की उनकी गिरफ्त में थी। वह नंगी और कई तरह से असहाय भी थी। उनके संयम की मानो परीक्षा हो रही थी। मन पर तो मास्टरजी ने काबू पा लिया पर तन का क्या करें। उनका लंड ताव में आ गया और उसके तैश के सामने बेचारी निकर का कपड़ा कमज़ोर पड़ रहा था। वह उसके बढ़ाव और उफ़ान को अपने में सीमित रखने में नाकामयाब हो रहा था। अतः मास्टरजी का लंड निकर को उठाता हुआ आसमान को सलामी दे रहा था। मास्टरजी के इरादों का विद्रोह करते हुए उन्हें मानो अंगूठा दिखा रहा था। यह तो अच्छा था कि प्रगति उलटी लेटी हुई थी वरना लिंगराज की यह हरकत उससे छिपी नहीं रह सकती थी। सावधानी बरतते बरतते भी उनकी लंड-युक्त निकर प्रगति की गांड को छूने लगी।

कुछ भी कहो, सामाजिक आपत्ति और विपदा एक बात है और प्रकृति के नियम और बात हैं। प्रगति या उसकी जगह कोई और लड़की, का सम्भोग के प्रति विरोध सामाजिक बंधनों के कारण होता है ना कि उसके तन-मन की आपत्ति के कारण। तन-मन से तो सबको सम्भोग का सुख अच्छा लगता है बशर्ते सम्भोग सम्मति के साथ किसी प्रियजन के साथ हो। यहाँ भी, हालाँकि प्रगति के संस्कार उसको ग्लानि का आभास करा रहे थे, पर मास्टरजी के लंड का उसके चूतड़ों पर हल्का हल्का स्पर्श, उसके शरीर को रोमांचित और मन को प्रफुल्लित कर रहा था। प्रगति की योनि से सहसा पानी बहने लगा।

मास्टरजी क्योंकि पीठ की मालिश में मग्न थे, प्रगति की योनि गीली होने का दृश्य नहीं देख पाए। उनकी नज़र पीठ की तरफ और ध्यान चूतड़ों से स्पर्श करती अपनी निकर पर था जिसके कारण उनका लिंग कठोर से कठोरतर होता जा रहा था। उन्हें याद नहीं आ रहा था कि इससे पहले उनका लंड इतनी जल्दी कब दुबारा सम्भोग के लिए तैयार हुआ हो !! उन्हें अपने आप पर गर्व होने लगा पर साथ ही चिंता भी होने लगी कि इस अवस्था से कैसे निपटें ? वे नहीं चाहते थे कि प्रगति को उनका विराट लंड दिख जाये। उन्हें डर था वह घबरा कर भाग न जाए। स्थिति पर काबू पाने के लिए वे प्रगति के ऊपर से हट गए और उसकी बगल में बैठ कर उसकी गर्दन और कन्धों को सहलाने लगे। उन्होंने प्रगति के निचले शरीर पर चादर भी उढ़ा थी। प्रगति के कामोत्तेजन को जैसे अचानक ब्रेक लग गया। उसे थोड़ा बुरा लगा पर राहत भी महसूस की। उसे अपने ऊपर गुस्सा भी आ रहा था कि अपने ऊपर संयम क्यों नहीं रख पा रही है। उसे लगा कि मास्टरजी क्या सोचेंगे अगर उन्हें पता लगा कि उसके शरीर में कैसी कशिश चल रही है। वे तो उसका इलाज करने में लगे हैं और वह किसी और प्रवाह में बह रही है !
अपने ऊपर प्रगति को शर्म आने लगी और मन ही मन मास्टरजी का धन्यवाद किया कि वे उसके ऊपर से उठ गए और उसको ढक दिया। अब उन्हें प्रगति की योनि की अवस्था का पता नहीं चलेगा, जो कि सम्भोग के लिए तत्पर हो रही थी।

थोड़ी देर में मास्टरजी का लिंग मायूस हो कर सिकुड़ गया और प्रगति की योनि भी बुझ सी गई। दोनों को इससे राहत मिली। प्रगति नहीं चाहती थी कि मास्टरजी को उसकी कामोत्तेजना के बारे में पता चले। कहीं वे उसे बुरी और बदचलन लड़की न समझने लगें। उधर मास्टरजी नहीं चाहते थे कि प्रगति उनके लिंग के विराट रूप को देख ले। उन्हें डर था प्रगति डर के मारे भाग ही न जाए। वे प्रगति के साथ अपने रिश्ते को धीरे धीरे विकसित करना चाहते थे और एक लम्बा सम्बन्ध बनाना चाहते थे।

मास्टरजी को जब यकीन हो गया कि उनका लंड नियंत्रण में आ गया है और उनकी निकर के आकार को नहीं ललकार रहा तो वे उठ खड़े हुए और प्रगति को चित लेट जाने का आदेश दे कर कमरे से बाहर चले गए। प्रगति एक आज्ञाकारी शिष्या कि भांति चादर के नीचे ही करवट बदल कर सीधी हो गई। हालाँकि वह चादर के नीचे थी, फिर भी सहसा उसने अपने हाथों से अपने स्तन ढक लिए ताकि उसके वक्ष की रूपरेखा चादर पर न खिंचे।

वहां मास्टरजी ने गुसलखाने में जाकर अपने नटखट लंड को नियंत्रण में लाने के लिए एक बार फिर मामला हाथ में लिया और हस्त मैथुन करने लगे। वे दुबारा अपने आप को ऐसी स्थिति में नहीं लाना चाहते थे जहाँ उन्हें प्रगति से हाथ धोना पड़े। कुछ देर के प्रयास के बाद मास्टरजी का लंड एक बार फिर लावा उगलने लगा, पर इस बार पहले की भांति का ज्वालामुखी नहीं था। एक फुलझड़ी के मानिंद था। मास्टरजी को इस राहत से तसल्ली मिली और वे एक नए भरोसे के साथ प्रगति के पास आ गए। उनका लिंग एक भीगी बिल्ली की तरह असहाय सा निकर में लटक रहा था और गवाएँ हुए दो मौकों का अफ़सोस कर रहा था।

प्रगति के चित्त लेटने से एक समस्या यह खड़ी हुई कि अब दोनों एक दूसरे को देख सकते थे। पर दोनों ही एक दूसरे से आँख नहीं मिलाना चाहते थे क्योंकि दोनों के मन में ग्लानि भाव था।एक अजीब सी चुप्पी का वातावरण छा गया था। इतने में प्रगति ने अपने हाथ चादर से बाहर निकाल कर अपनी आँखों पर रख लिए और आँखें मूँद लीं। उसे शायद ज्यादा शर्म महसूस हो रही थी क्योंकि नंगी तो वह थी !!! उसकी इस हरकत से दो फायदे हुए। एक तो दोनों की आँखों का संपर्क टूट गया और दूसरे प्रगति के वक्ष स्थल से उसके हाथों का बचाव चला गया। प्रगति की साँसें उसकी छाती को ऊपर नीचे कर रहीं थीं जिस से उसके स्तनों के ऊपर रखी चादर ऊपर नीचे खिसक रही थी। इस चादर की रगड़ से उसकी चूचियों में गुदगुदी हो रही थी और वे उभर कर खड़ी हो गई थीं। उसके वक्ष की रूप रेखा अब चादर पर स्पष्ट दिखाई दे रही थी। मास्टरजी को यह दृश्य बहुत अच्छा लगा।
मास्टरजी ने अपने काम पांव की तरफ से आरम्भ किया। वे प्रगति की छाती पर पड़ी चादर को नहीं छेड़ना चाहते थे। उन्होंने प्रगति के पांव से लेकर जांघों तक की चादर उघाड़ दी और तेल की मालिश करने लगे। तलवे तो पहले ही हो चुके थे फिर भी उन्होंने तलवों पर कुछ समय बिताया क्योंकि वे प्रगति को गुदगुदा कर उसकी उत्तेजना को कायम रखना चाहते थे। तलवों के विभिन्न हिस्सों का संपर्क शरीर के विभिन्न अंगों से होता है और सही जगह दबाव डालने से कामेच्छा जागृत होती है। इसी आशा में वे उसके तलवों का मसाज कर रहे थे। प्रगति को इसमें मज़ा आ रहा था। कुछ देर पहले उसकी कामुक भावनाओं पर लगा अंकुश मानो ढीला पड़ रहा था। मास्टरजी की उंगलियाँ उसके शरीर में फिर से बिजली का करंट डाल रही थीं।

धीरे धीरे मास्टरजी ने तलवों को छोड़ कर घुटनों के नीचे तक की टांगों को तेल लगाना शुरू किया। यह करने के लिए उन्होंने प्रगति के घुटने ऊपर की तरफ मोड़ दिए। चादर पहले ही जाँघों तक उघड़ी हुई थी। घुटने मोड़ने से प्रगति की योनि प्रत्यक्ष हो गई। प्रगति ने तुंरत अपनी टाँगें जोड़ लीं। पर इस से क्या होता है !? उसकी योनि तो फिर भी मास्टरजी को दिख रही थी हालाँकि उसके कपाट बिलकुल बंद थे। मास्टरजी ने खिसक कर अपने आप को प्रगति के और समीप कर लिया जिस से उनके हाथ प्रगति की जांघों तक पहुँच सकें।
प्रगति की साँसें और तेज़ हो गईं और उसने अपने दोनों हाथ अपनी आँखों पर और कस कर बांध लिए। मास्टरजी ने प्रगति के घुटनों से लेकर उसकी जांघों तक की मालिश शुरू की। वे उसकी जांघों की सब तरफ से मालिश कर रहे थे और उनके अंगूठे प्रगति की योनि के बहुत नज़दीक तक भ्रमण कर रहे थे। प्रगति को बहुत गुदगुदी हो रही थी और वह अपनी टाँगें इधर उधर हिलाने लगी। ऐसा करने से मास्टरजी के अंगूठों को और आज़ादी का मौका मिल गया और वे उसकी योनि के द्वार तक पहुँचने लगे। प्रगति ने शर्म से अपनी टांगें सीधी कर लीं और आधी सी करवट ले कर रुक गई। उसने अपनी टाँगें भी जोर से भींच लीं। मास्टरजी ने उसकी इस प्रतिक्रिया का सम्मान किया और कुछ देर तक कुछ नहीं किया। प्रगति की प्रतिक्रिया उसके कुंवारेपन और अच्छे संस्कारों का प्रतीक था और यह मास्टरजी को अच्छा लगा। उनकी नज़र में जो लड़की लज्जा नहीं करती उसके साथ सम्भोग में वह मज़ा नहीं आता। वे तो एक कमसिन, आकर्षक, गरीब, असहाय और कुंवारी लड़की का सेवन करने की तैयारी कर रहे थे और उन्हें लगता था वे मंजिल के काफी नज़दीक पहुँच गए हैं।
थोड़े विराम के बाद उन्होंने प्रगति को करवट से सीधा किया और बिना टांगें मोड़े उसकी मालिश करने लगे। उन्हें शायद नहीं पता था कि प्रगति की योनि फिर से गीली हो चली थी और इसीलिए प्रगति ने इसे छुपाने की कोशिश की थी। प्रगति ने अपने होंट दांतों में दबा रखे थे और वह किसी तरह अपने आप को क़ाबू में रख रही थी जिससे उसके मुँह से कोई ऐसी आवाज़ न निकल जाए जिससे उसको मिल रहे असीम आनंद का भेद खुल जाए। मास्टरजी ने स्थिति का समझते हुए प्रगति की जांघों पर से ध्यान हटाया। उन्होंने उसके पेट पर से चादर को ऊपर लपेट दिया और उसके पतले पेट पर तेल लगाने लगे। प्रगति को लग रहा था मानो उसका पूरा शरीर ही कामाग्नि में लिप्त हो गया हो। मास्टरजी जहाँ भी हाथ लगायें उसे कामुकता का आभास हो। यह आभास उसकी योनि को तर बतर करने में कसर नहीं छोड़ रहा था और प्रगति को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे !! उसे लगा थोड़ी ही देर में उसकी योनि के नीचे बिछी चादर गीली हो जायेगी। मास्टरजी को शायद उसकी इस दशा का भ्रम था। कुछ तो वे उसकी योनि देख भी चुके थे और कुछ वे प्रगति के शारीरिक संकेत भी पढ़ रहे थे। उन्हें पुराने अनुभव काम आ रहे थे।
प्रगति के पेट पर हाथ फेरने में मास्टरजी को बहुत मज़ा आ रहा था। इतनी पतली कमर और नरम त्वचा उनके हाथों को सुख दे रही थी। वे नाभि में अंगूठे को घुमाते और पेट के पूरे इलाके का निरीक्षण करते। उनकी आँखों के सामने प्रगति की योनि के इर्द गिर्द थोड़े बहुत घुंघराले बाल थे जो योनि को छुपाने की नाकाम कोशिश कर रहे थे। प्रगति ने अपनी टाँगें कस कर जोड़ रखी थीं जिससे योनि ठीक से नहीं दिख रही थी पर फिर भी मास्टरजी की नज़रों के सामने थी और उनकी नज़रें वहां से नहीं हट रही थीं।

अब मास्टरजी ने प्रगति की छाती पर से चादर हटाते हुए उसके सिर पर डाल दी। अब वह कुछ नहीं देख सकती थी और उसके हाथ भी चादर के नीचे क़ैद हो गए थे। मास्टरजी को यह व्यवस्था अच्छी लगी। इसकी उन्होंने योजना नहीं बनाईं थी। यह स्वतः ही हो गया था। मास्टरजी को लगा भगवान् भी उसका साथ दे रहे हैं।

मास्टरजी ने पहली बार प्रगति के स्तनों को तसल्ली से देखा। यद्यपि वे इतने बड़े नहीं थे पर मनमोहक गोलनुमा आकार था और उनके उभार में एक आत्मविश्वास झलकता था। उनके शिखर पर कथ्थई रंग के सिंघासन पर गौरवमई चूचियां विराजमान थीं जो सिर उठाए आसमान को चुनौती दे रही थीं।

प्रगति की आँखें तो ढकी थीं पर उसे अहसास था कि मास्टरजी उसके नंगे शरीर को घूर रहे होंगे। यह सोच कर उसकी साँसें और तेज़ हो रही थीं उसका वक्ष स्थल खूब ज्वार भाटे ले रहा था। मास्टरजी का मन तो उन चूचियों को मूंह में लेकर चूसने का कर रहा था पर आज मानो उनके लिए व्रत का दिन था। तेल हाथों में लगाकर उन्होंने प्रगति के स्तनों को पहली बार छुआ। इस बार उन्हें बिजली का झटका सा लगा। इतने सुडौल, गठीले और नरम वक्ष उन्होंने अभी तक नहीं छुए थे। उनका स्पर्श पा कर स्तन और भी कड़क हो गए और चूचियां तन कर और कठोर हो गईं।

जब उनकी हथेली चूचियों पर से गुज़रती तो वे दबती नहीं बल्कि स्वाभिमान में उठी रहतीं। मास्टरजी को स्वर्ग का अनुभव हो रहा था। इसी दौरान उन्हें एक और अनुभव हुआ जिसने उन्हें चौंका दिया, उनका लिंग अपनी मायूसी त्याग कर फिर से अंगडाई लेने की चेष्टा कर रहा था। मास्टरजी को अत्यंत अचरज हुआ। उन्होंने सोचा था कि दो बार के विस्फोट के बाद कम से कम १२ घंटे तक तो वह शांत रहेगा। पर आज कुछ और ही बात थी। उन्हें अपनी मर्दानगी पर गरूर होने लगा। चिंता इसलिए नहीं हुई क्योंकि प्रगति का सिर ढका हुआ था और वह कुछ नहीं देख सकती थी। मास्टरजी ने अपने लिंग को निकर में ही ठीक से व्यवस्थित किया जिस से उसके विकास में कोई बाधा न आये।
जब तक प्रगति की आँखें बंद थीं उन्हें अपने लंड की उजड्ड हरकत से कोई आपत्ति नहीं थी। वे एक बार फिर प्रगति के पेट के ऊपर दोनों तरफ अपनी टांगें करके बैठ गए और उसकी नाभि से लेकर कन्धों तक मसाज करने लगे। इसमें उन्हें बहुत आनंद आ रहा था, खासकर जब उनके हाथ बोबों के ऊपर से जाते थे। कुछ देर बाद मास्टरजी ने अपने आप को खिसका कर नीचे की ओर कर लिया और उसके घुटनों के करीब आसन जमा लिया। अपना वज़न उन्होंने अपनी टांगों पर ही रखा जिससे प्रगति को थकान या तकलीफ़ न हो।
मास्टरजी के घर से चोरों की तरह निकल कर घर जाते समय प्रगति का दिल जोरों से धड़क रहा था। उसके मन में ग्लानि-भाव था। साथ ही साथ उसे ऐसा लग रहा था मानो उसने कोई चीज़ हासिल कर ली हो। मास्टरजी को वशीभूत करने का उसे गर्व सा हो रहा था। अपने जिस्म के कई अंगों का अहसास उसे नए सिरे से होने लगा था। उसे नहीं पता था कि उसका शरीर उसे इतना सुख दे सकता है। पर मन में चोर होने के कारण वह वह भयभीत सी घर की ओर जल्दी जल्दी कदमों से जा रही थी।

जैसे किसी भूखे भेड़िये के मुँह से शिकार चुरा लिया हो, मास्टरजी गुस्से और निराशा से भरे हुए दरवाज़े की तरफ बढ़े। उन्होंने सोच लिया था जो भी होगा, उसकी ख़ैर नहीं है।

“अरे भई, भरी दोपहरी में कौन आया है?” मास्टरजी चिल्लाये।

जवाब का इंतज़ार किये बिना उन्होंने दरवाजा खोल दिया और अनचाहे महमान का अनादर सहित स्वागत करने को तैयार हो गए। पर दरवाज़े पर प्रगति की छोटी बहन अंजलि को देखते ही उनका गुस्सा और चिड़चिड़ापन काफूर हो गया। अंजलि हांफ रही थी।

“अरे बेटा, तुम? कैसे आना हुआ?”

“अन्दर आओ। सब ठीक तो है ना?” मास्टरजी चिंतित हुए। उन्हें डर था कहीं उनका भांडा तो नहीं फूट गया….
अंजलि ने हाँफते हाँफते कहा,”मास्टरजी, पिताजी अचानक घर जल्दी आ गए। दीदी को घर में ना पा कर गुस्सा हो रहे हैं।”

मास्टरजी,”फिर क्या हुआ?”

अंजलि,”मैंने कह दिया कि सहेली के साथ पढ़ने गई है, आती ही होगी।”

मास्टरजी,”फिर?”

अंजलि,”पिताजी ने पूछा कौन सहेली? तो मैंने कहा मास्टरजी ने कमज़ोर बच्चों के लिए ट्यूशन लगाई है वहीं गई है अपनी सहेलियों के साथ।”

अंजलि,”मैंने सोचा आपको बता दूं, हो सकता है पिताजी यहाँ पता करने आ जाएँ।”

मास्टरजी,”शाबाश बेटा, बहुत अच्छा किया !! तुम तो बहुत समझदार निकलीं। आओ तुम्हें मिठाई खिलाते हैं।” यह कहते हुए मास्टरजी अंजलि का हाथ खींच कर अन्दर ले जाने लगे।

अंजलि,”नहीं मास्टरजी, मिठाई अभी नहीं। मैं जल्दी में हूँ। दीदी कहाँ है?” अंजलि की नज़रें प्रगति को घर में ढूंढ रही थीं।

मास्टरजी,”वह तो अभी अभी घर गई है।”

अंजलि,” कब? मैंने तो रास्ते में नहीं देखा…”

मास्टरजी,”हो सकता है उसने कोई और रास्ता लिया हो। जाने दो। तुम जल्दी से एक लड्डू खा लो।”

मास्टरजी ने अंजलि से पूछा,”तुम चाहती हो ना कि दीदी के अच्छे नंबर आयें? हैं ना ?”

अंजलि,”हाँ मास्टरजी। क्यों? ”

मास्टरजी,”मैं तुम्हारी दीदी के लिए अलग से क्लास ले रहा हूँ। वह बहुत होनहार है। क्लास में फर्स्ट आएगी।”

अंजलि,”अच्छा?”

मास्टरजी,”हाँ। पर बाकी लोगों को पता चलेगा तो मुश्किल होगी, है ना ?”

अंजलि ने सिर हिला कर हामी भरी।

मास्टरजी,”तुम तो बहुत समझदार और प्यारी लड़की हो। घर में किसी को नहीं बताना कि दीदी यहाँ पर पढ़ने आती है। माँ और पिताजी को भी नहीं…. ठीक है?”

अंजलि ने फिर सिर हिला दिया…..

मास्टरजी,”और हाँ, प्रगति को बोलना कल 11 बजे ज़रूर आ जाये। ठीक है? भूलोगी तो नहीं, ना ?”

अंजलि,”ठीक है। बता दूँगी…। ”

मास्टरजी,”मेरी अच्छी बच्ची !! बाद में मैं तुम्हें भी अलग से पढ़ाया करूंगा।” यह कहते कहते मास्टरजी अपनी किस्मत पर रश्क कर रहे थे। प्रगति के बाद उन्हें अंजलि के साथ खिलवाड़ का मौक़ा मिलेगा, यह सोच कर उनका मन प्रफुल्लित हो रहा था।

मास्टरजी,”तुम जल्दी से एक लड्डू खा लो !”

“बाद में खाऊँगी” बोलते हुए वह दौड़ गई।

अगले दिन मास्टरजी 11 बजे का बेचैनी से इंतज़ार रहे थे। सुबह से ही उनका धैर्य कम हो रहा था। रह रह कर वे घड़ी की सूइयां देख रहे थे और उनकी धीमी चाल मास्टरजी को विचलित कर रही थी। स्कूल की छुट्टी थी इसीलिये उन्होंने अंजलि को ख़ास तौर से बोला था कि प्रगति को आने के लिए बता दे। कहीं वह छुट्टी समझ कर छुट्टी न कर दे।
वे जानते थे 10 से 4 बजे के बीच उसके माँ बाप दोनों ही काम पर होते हैं। और वे इस समय का पूरा पूरा लाभ उठाना चाहते थे। उन्होंने हल्का नाश्ता किया और पेट को हल्का ही रखा। इस बार उन्होंने तेल मालिश करने की और बाद में रति-क्रिया करने की ठीक से तैयारी कर ली। कमरे को साफ़ करके खूब सारी अगरबत्तियां जला दीं, ज़मीन पर गद्दा लगा कर एक साफ़ चादर उस पर बिछा दी। तेल को हल्का सा गर्म कर के दो कटोरियों में रख लिया। एक कटोरी सिरहाने की तरफ और एक पायदान की तरफ रख ली जिससे उसे सरकाना ना पड़े। साढ़े १० बजे वह नहा धो कर ताज़ा हो गए और साफ़ कुर्ता और लुंगी पहन ली। उन्होंने जान बूझ कर चड्डी नहीं पहनी।
उधर प्रगति को जब अंजलि ने मास्टरजी का संदेशा दिया तो वह खुश भी हुई और उसके हृदय में एक अजीब सी कूक भी उठी। उसे यह तो पता चल गया था कि मास्टरजी उसे क्या “पढ़ाने” वाले हैं। उसके गुप्तांगों में कल के अहसासों के स्मरण से एक बिजली सी लहर गई। उसने अपने हाव भाव पर काबू रखते हुए अंजलि को ऐसे दर्शाया मानो कोई ख़ास बात नहीं है। बोली,”ठीक है…. देखती हूँ …। अगर घर का काम पूरा हो गया तो चली जाऊंगी।”
अंजलि,” दीदी तुम काम की चिंता मत करो। छुटकी और मैं हैं ना …। हम सब संभाल लेंगे। तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो।”
उस बेचारी को क्या पता था कि प्रगति को “काम” की ही चिंता तो सता रही थी। छुटकी, जिसका नाम दीप्ति था, अंजलि से डेढ़ साल छोटी थी। तीनों बहनें मिल कर घर का काम संभालती थीं और माँ बाप रोज़गार जुटाने में रहते थे।

प्रगति,”तुम बाद में माँ बापू से शिकायत तो नहीं करोगे?”

अंजलि,”हम उन्हें बताएँगे भी नहीं कि तुम मास्टरजी के पास पढ़ने गई हो। हमें मालूम है बापू नाराज़ होंगे…। यह हमारा राज़ रहेगा, ठीक है !!”

प्रगति को अपना मार्ग साफ़ होता दिखा। बोली,”ठीक है, अगर तुम कहती हो तो चली जाती हूँ। ”

“पर तुम्हें भी हमारा एक काम करना होगा……” अंजलि ने पासा फेंका।

“क्या ?”

“मास्टरजी मुझे मिठाई देने वाले थे पर पिताजी के डर से मैंने नहीं ली। वापस आते वक़्त उन से मिठाई लेती आना।”

“ओह, बस इतनी सी बात…..। ठीक है, ले आऊँगी।” तुम ज़रा घर को और माँ बापू को संभाल लेना।”

दोनों बहनों ने साज़िश सी रच ली। छुटकी को कुछ नहीं मालूम था। दोनों ने उसे अँधेरे में रखना ही उचित समझा। बहुत बातूनी थी और उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता था।

प्रगति अब तैयारी में लग गई। घर का ज़रूरी काम जल्दी से निपटाने के बाद नहाने गई। उसके मन में संगीत फूट रहा था। वह नहाते वक़्त गाने गुनगुना रही थी। अपने जिस्म और गुप्तांगों को अच्छे से रगड़ कर साफ़ किया, बाल धोये और फिर साफ़ कपड़े पहने। उसे मालूम था मालिश होने वाली है सो चोली और चड्डी के ऊपर एक ढीला ब्लाऊज और स्कर्ट पहन ली। अहतियात के तौर पर स्कूल का बस्ता भी साथ ले लिया जब कि वह जानती थी इसकी कोई आवश्यकता नहीं होगी।

ठीक पौने ग्यारह बजे वह मास्टरजी के घर के लिए चल दी।
प्रगति सुनिश्चित समय पर मास्टरजी के घर पहुँच गई। वे उसकी राह तो बाट ही रहे थे सो वह घंटी बजाती उसके पहले ही उन्होंने दरवाजा खोल दिया। एक किशोर लड़के की भांति, जो कि पहली बार किसी लड़की को मिल रहा हो, मास्टरजी ने फ़ुर्ती से प्रगति को बांह से पकड़ कर घर के अन्दर खींच लिया। दरवाजा बंद करने से पहले उन्होंने बाहर इधर उधर झाँक के यकीन किया कि किसी ने उसे अन्दर आते हुए तो नहीं देखा। जब कोई नहीं दिखा तो उन्होंने राहत की सांस ली। अब उन्होंने घर के दरवाज़े पर बाहर से ताला लगा दिया और पिछले दरवाज़े से अन्दर आ गए। उसे भी उन्होंने कुंडी लगा दी और घर के सारे खिड़की दरवाजों के परदे बंद कर लिए।
प्रगति को उन्होंने पानी पिलाया और सोफे पर बैठेने का इशारा करते हुए रसोई में चले गए। अब तक दोनों में कोई बातचीत नहीं हुई थे। दोनों के मन में रहस्य, चोरी, कामुकता और डर का एक विचित्र मिश्रण हिंडोले ले रहा था। मास्टरजी तो बिलकुल बच्चे बन गए थे। प्रगति के चेहरे पर फिर भी एक शालीनता और आत्मविश्वास झलक रहा था। कल के मुकाबले आज वह मानसिक रूप से ज्यादा तैयार थी। उसके मन में डर कम और उत्सुकता ज़्यादा थी।

मास्टरजी रसोई से शरबत के दो ग्लास ले कर आये और प्रगति की तरफ एक ग्लास बढ़ाते हुए दूसरे ग्लास से खुद घूँट लेने लगे। प्रगति ने ग्लास ले लिया। गर्मी में चलकर आने में उसे प्यास भी लग गई थी। शरबत ख़त्म हो गया। दोनों ने कोई बातचीत नहीं की। दोनों को शायद बोलने के लिए कुछ सूझ नहीं रहा था। दोनों के मन में आगे जो होने वाला है उसकी शंकाएँ सर्वोपरि थीं।

मास्टरजी ने अंततः चुप्पी तोड़ी,”कैसी हो ?”

प्रगति सिर नीचा कर के चुप रही।

“मालिश के लिए तैयार हो?”

प्रगति कुछ नहीं बोली।

“मैं थोड़ी देर में आता हूँ, तुम मालिश के लिए तैयार होकर लेट जाओ।” यह कहकर मास्टरजी बाथरूम में चले गए।

प्रगति ने अपने कपड़े उतार कर सोफे पर करीने से रख दिए और चड्डी और चोली पहने ज़मीन पर गद्दे पर लेट गई और चादर से अपने आप को ढक लिया। अपने दोनों हाथ चादर के बाहर निकाल कर दोनों तरफ रख लिए।

मास्टरजी, वापस आये तो बोले,” अरे तुम तो सीधी लेटी हो !! चलो उल्टी हो जाओ।”

प्रगति चादर के अन्दर ही अन्दर पलटने की नाकाम कोशिश करने लगी तो मास्टरजी ने बोला,”प्रगति, अब मुझसे क्या शर्माना। चलो जल्दी से पलट जाओ।”
प्रगति ने चादर एक तरफ करके करवट ले ली और उल्टी लेट गई। लेट कर चादर ऊपर लेने का प्रयास करने लगी तो मास्टरजी ने चादर परे करते हुए कहा,”अब इसकी कोई ज़रुरत नहीं है। ”

“और इनकी भी कोई ज़रुरत नहीं है।” कहते हुए उन्होंने प्रगति की चड्डी नीचे खींच दी और टांगें उठा कर अलग कर दी। फिर चोली का हुक खोल कर प्रगति के पेट के नीचे हाथ डाल कर उसे ऊपर उठा लिया और चोली खींच कर हटा दी। अब प्रगति बिलकुल नंगी हो गई थी। हालाँकि वह उल्टी लेटी हुई थी, उसने अपने हाथों से अपनी आँखें बंद कर लीं उसके नितम्बों की मांसपेशियाँ स्वतः ही कस गईं।
मास्टरजी को प्रगति की यही अदाएं लुभाती थीं। उन्होंने उसकी पीठ और सिर पर हाथ फेर कर उसका हौसला बढ़ाया और उसकी मालिश करने में जुट गए।

गर्म तेल की मालिश से प्रगति को बहुत चैन मिल रहा था। कल के मुकाबले आज मास्टरजी ज़्यादा निश्चिंत हो कर हाथ चला रहे थे। उन्हें प्रगति के भयभीत हो कर भाग जाने का डर नहीं था क्योंकि आज तो वह सब कुछ जानते हुए भी अपने आप उनके घर आई थी। मतलब, उसे भी इस में मज़ा आ रहा होगा। मास्टरजी ने सही अनुमान लगाया।

थोड़ी देर के बाद मास्टरजी ने प्रगति के ऊपर घुड़सवारी सा आसन जमा लिया और अपना कुर्ता उतार दिया। अब वे सिर्फ लुंगी पहने हुए थे। लुंगी को उन्होंने घुटनों तक चढ़ा लिया था अपर उनका लिंग अभी भी लुंगी में छिपा था।

इस अवस्था में उन्होंने प्रगति के पिछले शरीर पर ऊपर से नीचे, यानि कन्धों से कूल्हों तक मालिश शुरू की। जब वे आगे की तरफ जाते तो जान बूझ कर अपनी लुंगी से ढके लिंग को प्रगति के चूतड़ों से छुला देते। कपड़े के छूने से प्रगति को जहाँ गुलगुली होती, मास्टरजी के लंड की रगड़ से उसे वहीं रोमांच भी होता। मास्टरजी को तो अच्छा लग ही रहा था, प्रगति को भी मज़ा आ रहा था। मास्टरजी ने अपने आसन को इस तरह तय किया कि जब वे आगे को हाथ ले जाएँ, उनका लंड प्रगति के चूतड़ों के बीच में, किसी हुक की मानिंद, लग जाये और उन्हें और आगे जाने से रोके। एक दो ऐसे वारों के बाद प्रगति ने अपनी टाँगें स्वयं थोड़ी खोल दीं जिससे उनका लंड अब प्रगति की गांड के छेद पर आकर रुकने लगा। जब ऐसा होता, प्रगति को सरसराहट सी होती और उसके रोंगटे से खड़े होने लगते। उधर मास्टरजी को प्रगति की इस व्यवस्था से बड़ा प्रोत्साहन मिला और उन्होंने जोश में आते हुए अपनी लुंगी उतार फेंकी।

अब वे दोनों पूरे नंगे थे। मास्टरजी ने प्रगति के हाथ उसकी आँखों पर से हटा कर बगल में कर दिए। अब वह एक तरफ से कुछ कुछ देख सकती थी। मास्टरजी ने अपने वार जारी रखे जिसके फलस्वरूप उनका लंड तन कर प्रबल और विशाल हो गया और प्रगति की गांड पर व्यापक प्रभाव डालने लगा।

मास्टरजी आपे से बाहर नहीं होना चाहते थे सो उन्होंने झट से अपने आप को नीचे की तरफ सरका लिया और प्रगति की टांगों पर ध्यान देने लगे। उनके हाथ प्रगति की जांघों के बीच की दरार में खजाने को टटोलने लगे। प्रगति से गुदगुदी सहन नहीं हो रही थी। वह हिलडुल कर बचाव करने लगी पर मास्टरजी के हाथों से बच नहीं पा रही थी। जब कुछ नहीं कर पाई तो करवट ले कर सीधी हो गई। अपनी टाँगें और आँखें बंद कर लीं और हाथों से स्तन ढक लिए। मास्टरजी इसी फिराक़ में थे। उन्होंने प्रगति के पेट, पर हाथ फेरते हुए प्रगति के हाथ उसके वक्ष से हटा दिए।

तेल लगा कर अब वे उसकी छाती की मालिश कर रहे थे। प्रगति के उरोज दमदार और मांसल लग रहे थे। उसकी चूचियां उठी हुई थीं और वह जल्दी जल्दी साँसें ले रही थी। मास्टरजी का लंड प्रगति की नाभि के ऊपर था और कभी कभी उनके लटके अंडकोष उसकी योनि के ऊपरी भाग को लग जाते। प्रगति बेचैन हो रही थी। उसमें वासना की अग्नि प्रज्वलित हो चुकी थी और उसकी योनि प्रकृति की अपार गुरुत्वाकर्षण ताक़त से मजबूर मास्टरजी के लिंग के लिए तृषित हो रही थी। सहसा उसकी योनि से द्रव्य पदार्थ रिसने लगा।

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