Thursday 5 November 2015

आश्रम में रासलीला Ashram Me RasLila

हेलो.. ! रुचिका !” मेरे सम्पादक की आवाज सुनते ही मैं सम्भल गई। “हाँ बोलिए !” मैंने अपनी जुबान में मिठास घोलते हुए कहा। मेरे सम्पादक रजनीश से मेरा वैसे भी छत्तीस का आंकड़ा है। वो बुरी तरह चीखता है मुझपर। “तुम्हें किशनपुरा जाना है, अभी इसी वक़्त !” उसके आदेश करने वाले लहजे को सुन कर दिल में आया कि सामने हो तो दो चार गालियाँ जरूर सुनाती। क्यों?” उसे शायद मुझसे इस तरह के सवाल की ही उम्मीद थी। “तुम्हें किशनपुरा के गुरू अचलानन्द का सम्पूर्ण-साक्षात्कार लेना है !” “क्या?” मैं ख़ुशी से उछल पडी। काफ़ी दिनों से गुरूजी का साक्षात्कार लेना चाहती थी। बहुत सुन रखा था उनके बारे में। बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व के आदमी थे। किशनपुरा जो कि हमारे यहाँ से कोई बीस-बाईस किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव है। वहाँ काफी लम्बी-चौड़ी जगह में उनका आश्रम था। काफी भक्त भी थे उनके। बीच बीच में दबी जुबान में कभी कभी उनके रंगीले स्वभाव के बारे में भी अफवाह फ़ैल जाती थी। “उनके बारे में विस्तृत जानकारी एकत्र करनी है तुम्हें !” रजनीश ने आगे कहा,”कम से कम चार-पाँच सप्ताह की सामग्री हो जिसे हम हर रविवार विशेष बुलेटिन में जगह देंगे. इसके लिये तुम्हें कई दिन मन लगा कर काम करना होगा। यह तुम्हारी इच्छा है कि तुम वहीं रहो या प्रतिदिन वहाँ जाओ, लेकिन हमें सम्पूर्ण सूचनाएँ चाहिएँ, सुबह से शाम तक, गुरूजी के बारे में हर तरह की बातें, कुछ प्रवचन में भी ध्यान करना। सुन रही हो ना मेरी बातें?” “हाँ… हाँ सर ! मैं आज से ही काम पर लग जाती हूँ !” “आज से ही नहीं अभी से !” कह कर उसने फ़ोन रख दिया। जरूर बुड्ढा गाली निकाल रहा होगा ! लेकिन मैं तो काफ़ी दिनों से किसी बड़े प्रोजेक्ट के लिए तरस रही थी। मुझे ख़ुशी से चहकते देख मेरे पति जीवन ने मुझे बाँहों में भर कर चूम लिया। मैंने उन्हें सारी बात बताई, वो भी मेरी ख़ुशी में शरीक हो गए।
मैं अपने बारे में बताना तो भूल ही गई. मैं रुचिका, रुचिका लाल, २६ साल की एक सेक्सी महिला हूँ। मेरी शादी जीवन लाल से आज से चार साल पहले हुई थी। हम दोनो यहाँ लखनऊ स्टेशन के पास ही रहते हैं। मैं एक समाचारपत्र में वरिष्ठ सम्वाददाता के पद पर हूँ. हमारे समाचारपत्र की बहुत अच्छी प्रसार-संख्या है. मैं वैसे तो किसी विशेष केस को ही अपने हाथ में लेती हूँ. वरना आजकल सम्पादन का काम ही देख रही हूँ जो कि बड़ा ही बोरिंग काम है. घूमना-फिरना और नए-नए लोगों से मिलना मेरा शुरू से ही मनभावन कार्य रहा है। हम दोनों के अलावा हमारे साथ मेरी सास रहती हैं, मेरे एक बच्चा है जो अभी एक साल का ही हुआ है। कामकाजी महिला होने के बावजूद मैं अपने बच्चे को जब भी मैं घर पर होती हूँ तो बच्चे को स्तनपान ही कराती हूँ लेकिन इससे मैं बहुत उत्तेज़ित हो जाती हूँ और फ़िर तो आप समझ ही गए होंगे कि जीवन साहब का क्या हाल होता होगा !
मेरे स्तन ३८ आकार के हैं और दूध भरे होने के कारण एकदम तने रहते हैं। मेरे पति जीवन शादी के बाद से ही मुझे अंग-प्रदर्शन के लिए जोर देते थे। उन्हें किसी को मेरे बदन को घूरना बहुत अच्छा लगता है। इसके लिए मुझे हमेशा कसे हुए, बदन से चिपके हुए कपडे पहनने के लिए कहते हैं और ब्लाऊज़ का गला और पीठ तो इतनी गहरे होते हैं कि आधे वक्ष बाहर दिखें !. कभी कभी तो उनके कहने पर अर्ध-पारदर्शी कपडे पहन कर या बिना ब्रा के ब्लाऊज़ पहन कर भी बाहर जाती हूँ। खैर अब उस बात पर लौटते हैं। मैंने एक काफ़ी लो-कट कसी हुई टी-शर्ट पहनी और एक टांगों से चिपकी हुई जींस। गरमी का मौसम था इसलिए नीचे मैंने ब्रा नहीं पहनी थी। मेरे चूचुक बाहर से साफ दिख रहे थे। “कैसी लग रही हूँ?” मैंने पूछा। “ह्म्म्म ! हमेशा की तरह सेक्सी !”
“कैसी लग रही हूँ?” मैंने पूछा। “ह्म्म्म ! हमेशा की तरह सेक्सी !” “अनीष का ख्याल रखना ! हो सकता है लौटने में देर हो जाये, मैं कार ले जा रही हूँ।” मैं अपनी कार पर किशनपुरा के लिए निकल गई। गरमी का मौसम था, कुछ ही देर में गर्म हवाएँ चलने लगी। मैं दस बजे तक किशनपुरा पहुंच गई। गुरूजी का आश्रम बहुत ही विशाल था। अन्दर की सजावट देख कर मेरा मुँह तो खुला का खुला रह गया। मैं वहाँ गुरूजी से मिली। गुरूजी बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व के आदमी थे। उनके चेहरे में एक चमक थी, घनी दाढ़ी में चेहरा और भरा-भरा लग रहा था। कोई ६’२” या ३” कद होगा, चौड़ा बालों से भरा सीना किसी भी महिला को पागल करने के लिए काफ़ी था। उसने नंगे बदन पर एक लाल तहमद बाँध रखी थी और एक लाल दुपट्टा कंधे पर रख रखा था। उन्होंने बिना कुछ बोले मुझे ऊपर से नीचे तक देखा। मेरे स्तनों को देखते हुये मुझे लगा कि उनकी आँखों में क्षण भर के लिए एक चमक सी आई फ़िर ओझल हो गई। मुझे हाथ से बैठने का इशारा किया। वो तब किसी पत्रिका के पन्ने पलट रहे थे। मैंने उनको अपने आने का मकसद बताया। उन्होंने मुझे बैठने को इशारा किया।
मैंने अपना पहचान-पत्र उनके सामने कर दिया। उनके चहरे पर एक बहुत ही प्यारी सी मुस्कान सदा ही बनी रही थी. मेरे बारे में औपचारिक पूछताछ के बाद उन्होंने अपने एक शिष्य को बुलाया, “इनको मेरे बगल वाला कमरा दिखा दो। कुछ सामान हो तो वो भी पहुँचा देना, ये हमारी खास अतिथि हैं, इनका पूरा ध्यान रखा जाए। मोनिका जी को इनके साथ रहने को कह देना, वो हमारे बारे में इनकी सारी जिज्ञासा शांत कर देंगी।” धीरे-धीरे और मृदु स्वर में उन्होंने कहा, स्वर बहुत धीर और गम्भीर था। “गुरूजी अपके पाठ का समय हो गया है !” उस आदमी ने उनसे कहा। गुरूजी उठते हुये मेरे सिर पर हाथ फेरा तो लगा मानो एक चुम्बकीय शक्ति उनके हाथों से मेरे बदन में प्रवेश कर गई। “तुम आराम करो और चाहो तो आश्रम में घूम फ़िर कर देख भी सकती हो, मोनी तुम्हें सब जगह दिखा देगी।” कह कर वो चले गए। मोनी नाम की लड़की कुछ ही देर में आ गई। उसने लाल रंग का एक किमोनो जैसा वस्त्र पहन रखा था, जैसा पहाड़ी इलाके में लडकियाँ पहनती हैं, वो बहुत ही ख़ूबसूरत थी और बदन भी सेक्सी था। उसने मुझे एक कमरा दिखाया, कमरा काफ़ी खूबसूरती से सजा हुआ था, मानो कोई फाइव स्टार होटल का कमरा हो। तभी एक युवती कोई शरबत लेकर आई. उसका स्वाद थोड़ा अजीब था, मगर उसे पीने के बाद तन-बदन में एक स्फूर्ति सी छा गई। मोनी ने पूरा आश्रम घुमाया, बहुत ही शानदार बना हुआ था।
उसने फ़िर सबसे मेरी मुलाक़ात कराई। वहाँ १२ आदमी और ५ महिलाएं रहती थी। महिलाएं सारी की सारी खूबसूरत और सेक्सी थी। सबने एक जैसा ही गाऊन पहन रखा था, जो क़मर पर डोरी से बंधा था। उन्होंने शायद अन्दर कुछ नहीं पहन रखा था क्योंकि चलने फिरने से उनकी बड़ी-बड़ी छातियाँ हिलती डुलती थी। आदमी सब क़मर पर एक लाल लुंगी बाँधे थे। दोपहर को खाना खाने के बाद गुरूजी कुछ देर विश्राम करने चले गए। शाम को उनका हॉल में प्रवचन था। मैं उनके संग रहने का कोई भी मौका नहीं छोड़ रही थी, बहुत ही अच्छा बोलते थे, मैं तो मंत्रमुग्ध हो गई। शाम की आरती के बाद आठ बजे मुझे उन्होंने वार्तालाप के लिए बुलाया। मैं उनसे तरह तरह के सवाल पूछने लगी। वो बिना झिझक उनके जवाब दे रहे थे। उनके जवाब मैं वॉकमैन में रेकॉर्ड कर रही थी मैं उनके जवाब रेकॉर्ड करने के लिए उनकी तरफ झुक कर बैठी थी जिसके कारण मेरे टी-शर्ट के गले से बिना ब्रा के मेरे स्तन और चूचुक साफ दिख रहे थे।
गुरूजी की नजरें उनको सहला रही थी। अचानक मेरी नजरें उनके ऊपर पड़ी, उनकी आँखों का पीछा किया तो पता चला कि वो कहाँ घूम रही हैं, मैं शरमा गई लेकिन मैंने अपने दूध की बोतलें छिपाने की कोई कोशिश नहीं की। मैंने अपने बातों की दिशा थोड़ी बदली,”गुरूजी अपके बारे में तरह तरह की अफवाह भी सुनने को मिलती हैं?” मैंने पूछा लेकिन उनके चेहरे पर खिली मुस्कराहट में कोई बदलाव नज़र नहीं आया। “जब भी कोई लोगों की भलाई के लिए अपना सब कुछ लगा देता है तो कुछ आदमी उस से जलने लगते हैं, अच्छे मनुष्य का काम होता है की बगुले की तरह सिर्फ मोती चुन ले और कंकड़ को वहीँ पडे रहने दे!” उन्होंने बड़ी ही मधुर आवाज में मेरे प्रश्न का जवाब दिया। इसी तरह काफ़ी देर तक बातें होती रही। उन्होंने बातों-बातों में मुझे कई बार उनके आश्रम से जुड़ने के लिए कहा। रात के साढ़े नौ बजे मैंने उनसे अब घर जाने की इजाजत मांगी।
लेकिन तभी उनके एक शिष्य ने आकर बताया कि बाहर काफ़ी तेज़ बरसात शुरू हो गई है। मैं बाहर आई तो देखा बरसात काफ़ी तेज हो रही है। मैं अकेली और बाईस किलोमीटर का सुनसान रास्ता ! कुछ देर तक मैं बरसात के रुकने का इंतज़ार करती रही मगर बरसात रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। मैं अन्दर आ गई। अचलानन्द जी मुझे वापस आता देख खिल उठे। उन्होंने फौरन मोनी को बुलाया,” इनके भोजन और ठहरने की व्यवस्था कर दो !”
मोनी ने मुझे अपने साथ आने का इशारा किया। मैं उसके साथ अपने कमरे में आ गई। उसने एक किमोनो मुझे लाकर दिया। वो मुझे लेकर बाथरूम में आ गई। बाथरूम की एक दीवार पर लम्बा चौड़ा आइना लगा हुआ था। वो तो बाद में पता चला कि वो एक एक-तरफ़ा शीशा था जिसके दूसरी तरफ से बाथरूम के अन्दर का सारा दृश्य साफ दिखता था। “अपने कपडे उतार कर इसे पहन लो !”
“अपने कपडे उतार कर इसे पहन लो !” मेरा चेहरा उसकी ओर था और आइना मेरे पीछे की ओर था. मैंने अपने टी-शर्ट को पकड़ कर अपने बदन से अलग कर दिया। मेरे गोरे बदन पर तने हुये ३८ आकार के स्तन देख कर उसकी आँखों में एक चमक आ गई,”तुम बहुत ख़ूबसूरत हो” उसने मेरे स्तन को हल्के से छूते हुये कहा। मैंने अपनी जींस को खोल कर अपने पैरों के नीचे सरका दी, उसे अपने बदन से अलग कर के मोनी को थमा दिया। फ़िर मैंने उसके हाथ में थामे किमोनो को लेने की कोशिश की तो उसने अपने हाथ को दूर कर लिया,”नहीं मैंने कहा था कि सारे वस्त्र खोल दीजिये, इसे पहनते समय शरीर पर और कोई अपवित्र वस्त्र नहीं होना चाहिए” उसने मेरे बदन पर मौजूद एक मात्र पैन्टी के इलास्टिक की तरफ हाथ बढाया,”अपनी पैन्टी को धीरे धीरे नीच करते हुये पीछे घूमो !” कह कर वो आइने वाली दीवार की तरफ चली गई।
मुझे तो समझ में नहीं आया कि वो ऐसा करने को क्यों कह रही है। लेकिन मुझे क्या पता था कि इस तरह से दीवार के उस तरफ मौजूद लोगों के लिए मैं अनावृत होकर गर्मागर्म अंग-प्रदर्शन कर रही थी। मैंने आइने की तरफ घूम कर नीचे झुकते हुये अपने पैरों से अपनी पैन्टी को निकाल दिया। “अब सीधी खड़ी हो जाओ !” मैं सीधी हो गई, बिल्कुल नग्न ! “वाह ! क्या शानदार बदन है आपका !” कह कर उसने मेरी योनि के ऊपर अपना हाथ फेरा।
मैं उसकी हरकतों से मुस्कुरा उठी। फ़िर मैंने उसके हाथों से वो किमोनो लेकर बदन पर पहन लिया। फ़िर हम बाहर आ गए। रात का भोजन करके मैंने जीवन को फ़ोन किया कि मुझे रात को यहाँ रुकना पड़ रहा है इसलिए बच्चे का ख्याल रखे। फ़िर मैं अपने कमरे में आ गई। कमरा बहुत शानदार था, नर्म बिस्तर पर सफ़ेद रेशमी चादर माहौल को और अनुपम बना रही थी। एक दरवाज़ा बगल में भी था जो दूसरी तरफ से बंद था और उसमें मेरे कमरे की तरफ से बंद करने के लिए कोई कुण्डी नहीं थी। मैं बिस्तर पर लेट गई। भोजन के बाद मुझे एक ग्लास भर कर कोई जूस दिया था, पता नहीं उसकी वजह से या वहाँ के माहौल से मेरा बदन गर्म होने लगा।
मैं उठी और उस किमोनो को अपने बदन से अलग कर पूरी तरह नग्न बिस्तर पर लेट गई और एक रेशमी चादर अपने बदन पर ओढ़ ली। कुछ देर में मेरा बदन कसमसाने लगा, मेरी अन्तर्वासना जागृत होने लगी, कान-पिपासा से वशीभूत हो मैंने अपने हाथ अपनी योनि पर रख दिया और उसे ऊपर से दबाने लगी। मन कर रहा था कि कोई आ कर मुझे मसल कर रख दे। मेरे स्तनाग्र विराट रूप धारण करने लगे थे, मैं अपनी उँगलियों के पौरों से उन्हें मसलने लगी। मैं अपनी दो उँगलियाँ अपनी योनि के अन्दर-बाहर करने लगी। मगर मेरी भूख थी कि बढ़ती ही जा रही थी।
कुछ देर में मेरा बदन कसमसाने लगा, मेरी अन्तर्वासना जागृत होने लगी, कान-पिपासा से वशीभूत हो मैंने अपने हाथ अपनी योनि पर रख दिया और उसे ऊपर से दबाने लगी। मन कर रहा था कि कोई आ कर मुझे मसल कर रख दे। मेरे स्तनाग्र विराट रूप धारण करने लगे थे, मैं अपनी उँगलियों के पौरों से उन्हें मसलने लगी। मैं अपनी दो उँगलियाँ अपनी योनि के अन्दर-बाहर करने लगी। मगर मेरी भूख थी कि बढ़ती ही जा रही थी। कोई आधे घंटे बाद हल्की सी आवाज आई। मैंने देखा- बिना आवाज के बगल वाला दरवाजा खुल रहा है। मैं चुपचाप चित्त हो कर लेट गई। हल्की सी आँखें खोल कर देखा कि कोई कमरे में आ रहा है, वो धीरे धीरे चलता हुआ मेरे बिस्तर के पास आया, उसने अपना हाथ उठा कर मेरे एक उभार पर रखा, उसे मेरी एक छाती पर रख कर दबाया बहुत धीरे से। फ़िर उसने चादर के किनारे को पकड़ कर मेरे बदन से हटाना शुरू किया, रेशमी चादर मेरे नाज़ुक चिकने बदन से सरकती रही और मैं पूर्ण अनावृत हो गई।
अब एक हाथ ने मेरे नग्न हो चुके चूचुक को धीरे से छुआ। उसने मुझे सोया हुआ जान कर अपना हाथ मेरे सिर पर रख कर धीरे धीरे नीचे सरकाना शुरू किया, इतना हल्का स्पर्श था मानो बदन पर कोई मोर-पंख फिरा रहा हो। हाथ धीरे धीरे सरकता हुआ जब योनि के ऊपर पहुँचा तो मेरा चुपचाप पड़े रहना मुश्किल हो गया, मेरे होंठों से एक दबी सी सिसकारी निकल गई, उसने अपना हाथ चौंक कर हटा लिया। मैंने मानो नींद से जागते हुये कहा,”कौन….कौन है?” मैं बिस्तर से उठ कर खड़ी हो गई। “मैं !”
एक हलकी सी आवाज आई और उसने मुझे खींच कर अपनी बाँहों में भर लिया। मैं भी किसी बेल की तरह उसके बदन से लिपट गई। मैं समझ गई कि आगंतुक गुरूजी ही हैं। उनका बदन भी पूरी तरह नग्न था, वे मेरे चहरे को अपने हथेलियों के बीच लेकर चूमने लगे। मेरा शरीर तो पहले से ही कामाग्नि में तप था, मैं भी उसके चुम्बनो का जवाब देने लगी। मैं उसके चहरे को बेतहाशा चूमने लगी। मैं एक शादीशुदा महिला, अपने पति, बच्चे सब भूल गई थी।
कुछ देर तक हम यूँही एक दूसरे को चूमते रहे। उसके बाद उनके होंठ फिसलते हुये मेरे एक चूचुक पर आकर रुके और अपने मुँह में लेकर जोर जोर से चूसने लगे। मेरे सारे बदन में एक सिहरन सी दौड़ने लगी और मेरे स्तनों से निकल कर उन फलों का रस गुरूजी के मुँह में जाने लगा। वो एक स्तन को अपने मुँह में लेकर उससे दूध पी रहे थे और दूसरे को अपनी उँगलियों में लेकर खेल रहे थे। मैं अपने सिर को उत्तेजना में झटकने लगी और उनके सिर को अपनी छाती पर जोर से दबाने लगी। एक स्तन का सारा रस पीने के बाद उन्होंने दूसरे स्तनाग्र को अपने मुँह में ले लिया और उसे भी चूसने लगे। मैंने देखा कि पहला चूचुक काफ़ी देर तक चूसने के कारण काफ़ी फूल गया है। मैंने उत्तेजनावश अपना हाथ बढ़ा कर उनके लिंग को अपनी मुट्ठी में ले लिया। उनका लिंग तना हुआ था. काफ़ी बड़ा लिंग था. इतना बड़ा लिंग मैंने तो कभी किसी का नहीं देखा था, कोई १०-१२” लम्बा होगा।
गुरूजी ने दूसरे वक्ष का भी सारा दूध पीने के बाद मुझे अपने से अलग किया और एक हाथ बढ़ाकर बिस्तर के पास लगे बेड लैंप को रोशन कर दिया। हल्की सी रौशनी कमरे में फ़ैल गई। सारे कमरे में अँधेरा था सिर्फ़ हम दोनों के नग्न बदन चमक रहे थे। उस रौशनी मुझे अपने से अलग कर गुरूजी ने मेरे नग्न बदन को निहारा, मैंने भी उनके गठीले बदन को भूखी नजरों से देखा। “बहुत खूबसूरत हो !” गुरूजी ने मेरे बदन की तारीफ़ की तो मैं एक दम किसी कमसिन लड़की की तरह शरमा गई. फ़िर उन्होंने मुझे कन्धों से पकड़ कर नीचे की ओर झुकाया। मैं उसके सामने घुटनों के बल बैठ गई।
मैंने लैंप की रौशनी में पहली बार उनके लिंग को देखा। उसे देख कर मेरे मुँह से हाय निकल गई। “काफ़ी बड़ा है गुरुजी ! मैं इसे नहीं ले पाऊँगी ! फट जायेगी मेरी !!!” “अभी से घबरा गई ! इसीलिए तो मैं कह रह था कि हमारे आश्रम की सदस्य हो जाओ। जो भी एक बार मेरे सम्पर्क में आती है वो मुझे छोड़ कर नहीं जा सकती और किसी लिंग से योनि नहीं फटती, योनि होती ही ऐसी है कि लिंग के हिसाब से अपना आकार बदल ले !” मैं घुटनों के बल बैठ कर कुछ देर तक अपने चेहरे के सामने उनके लिंग को पकड़ कर आगे पीछे करती रही। जब हाथ को पीछे करती तो लिंग का मोटा सुपाड़ा अपने बिल से बाहर निकाल आता। उनके लिंग के छेद पर एक बूँद प्री-कम चमक रही थी. मैंने अपनी जीभ निकाल कर लिंगाग्र पर चमकते हुये उस प्री-कम को अपनी जिव्हाग्र पर ले लिया और मुख में लेकर उसका स्वाद लिया जो मुझे बहुत भाया। फ़िर मैंने अपनी जीभ उनके लिंग के सुपाड़े पर फिरानी शुरू कर दी। वो आ आआ अह ऊ ओ ह्ह्ह करते हुये मेरे सिर को दोनो हाथों से थाम कर अपने लिंग पर दबाने लगे। “इसे पूरा मुँह में ले लो !!” गुरूजी ने कहा। मैंने अपने होंठों को हल्के से अलग किया तो उसका लिंग सरसराता हुआ मेरी जीभ को रगड़ता हुआ अन्दर चला गया। मैंने उनके लिंग को हाथों से पकड़ कर और अन्दर तक जाने से रोका मगर उन्होंने मेरे हाथों को अपने लिंग पर से हटा कर मेरे मुँह में एक जोर का धक्का दिया, मुझे लगा आज यह एक फ़ुट लम्बा लिंग मेरे गले को फाड़ता हुआ पेट तक जा कर मानेगा। मैं दर्द से छटपटा उठी, मेरा दम घुटने लगा था। तभी उन्होंने अपने लिंग को कुछ बाहर निकाला और फ़िर वापस उसे गले तक धकेल दिया. वो मेरे मुँह में अपने लिंग से धक्के लगाने लगे। कुछ ही देर में मैं उनकी हरकतों की अभ्यस्त हो गई और अब मुझे यह अच्छा लगने लगा। कुछ ही देर में मेरा बदन अकड़ने लगा और मेरे चूचुक एकदम तन गए, गुरूजी ने मेरी हालत को समझ कर अपने लिंग की रफ़्तार बढ़ा दी। इधर मेरा रस योनि से बाहर निकलता हुआ जांघों को भिगोता हुआ घुटनों तक जा बहा, उधर उसका ढ़ेर सारा गाढ़ा रस मेरे मुँह में भर गया। मैं इतने वीर्य को एक बार में सम्भाल नहीं पाई और मुँह खोलते ही कुछ वीर्य मेरे होंठों से मेरी छातियों पर और नीचे जमीन पर गिर पड़ा।
जितना मुँह में था उतना मैं पी गई। तभी कहीं से एक मधुर आवाज आई,” नहीं लड़की ! इनके प्रसाद का इस तरह अपमान मत करो !” मैंने चौंक कर सिर घुमाया तो देखा कि मोनी अँधेरे से निकल कर आ रही थी। उसने वही लबादा ओढ़ रखा था। उसने मेरे पास आकर मेरे होंठों पर लगे वीर्य को अपनी जीभ से साफ किया, अपनी उँगलियों से मेरे स्तनों पर लगे वीर्य को उठा कर मुझे ही चटा दिया। फ़िर उसने मुझे झुका कर जमीन पर गिरी वीर्य की बूंदों को चटवा कर साफ कराया। अब गुरूजी ने अपने लंड को मेरी योनि-द्वार पर रख दिया। मैं उनके चेहरे को निहार रही थी, मगर मेरा ध्यान योनि से सटे उनके लिंग पर था। मैं इंतज़ार कर रही थी कि कब उनका लिंग मेरी योनि की तृष्णा को शांत करेगा। उत्तेजना से मेरे भगोष्ठ अपने आप थोड़े से खुल गए थे। “इसे अपने हाथों से अन्दर लो !” उन्होंने कहा। मैंने फ़ौरन उसके लिंग को पकड़ कर अपने योनि-लब खोल कर उसमें रखा, गुरूजी ने एक जोर का झटका मारा और पूरा लिंग सरसराता हुआ अन्दर तक चला गया। “ऊऽऽ ऊऊ फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़् आऽऽऽ आआ ह्ह्ह्ह्ह्ह् !” 
मैं चीख उठी। ऐसा लगा कि उनका तगड़ा लिंग मेरे पूरे बदन को चीर कर रख देगा। मैंने अपनी टांगों से गुरूजी की क़मर को जकड रखा था, मुँह से चीख निकल रही थी मगर टांगों से उनके क़मर को अपनी योनि की तरफ ठेल रही थी। “धीरे गुरुजी ! दर्द कर रहा है ! आपका ये बहुत बड़ा है !!” गुरूजी धीरे धीरे अपना लिंग मेरी योनि से बाहर तक खींचा साथ साथ मैं झड़ गई। ऐसा लगा कि उनका लिंग पिस्टन की तरह बाहर आते हुए अपने साथ मेरे योनि-रस को खींचता हुआ ले आ रहा है। फ़िर उन्होंने अपने लिंग को हरकत दे दी। मेरा दो बार रस निकल चुका था इसलिए मैं हांफने लगी थी।
लेकिन उनके धक्कों ने कुछ ही देर में मुझे दोबारा गरम कर दिया। कुछ देर तक इसी तरह मुझे चोदने के बाद मेरे बदन से उतर गए। अब वो बिस्तर पर सीधे लेट गए. मैंने उठकर उनके लिंग को देखा मेरे रस से भीगा हुआ मोटा काला लिंग मुझे पागल कर रहा था। मैंने उनकी क़मर के दोनों ओर अपने घुटनों को रख कर अपने योनि-छिद्र को असमान की ओर तने लिंग पर रखा, अपने हाथों से लिंग को ठीक से छिद्र में करके उनकी छातियों पर दोनों हाथ रख कर उन्हें सहलाते हुये अपने चूतड़ों को नीचे की ओर दबाया। उसका लिंग कुछ अन्दर तक घुस गया। फ़िर मैंने अपना सारा बोझ उनके ऊपर डाल दिया और उनका लिंग मेरी योनि में अन्दर तक घुसता चला गया। मैं उनके लिंग पर अपनी चूत को ऊपर नीचे करने लगी। उन्होंने मेरी छातियों को पकड़ कर दबाना शुरू किया, एक छाती के अग्र भाग को जोर से खींचा तो उसमें से दूध के धार निकल कर गुरूजी के चेहरे पर पड़ी। उन्होंने मुँह खोल कर उस धार को अपने मुँह में समेट लिया। मैं उत्तेजना से पगला गई थी और उनके लिंग को बुरी तरह चोद रही थी, मेरा सिर पीछे की तरफ झटके खा रहा था। मैंने उनकी छातियों को अपनी मुट्ठी में भर लिया और चीख पड़ी- आआह्ह्ह् !!! मैंने उनके सीने के बालों को अपनी मुट्ठी में भर कर खींचा साथ ही मैं तीसरी बार झड़ गई, पट पट करके जाने कितने बाल टूट कर मेरी मुट्ठी में आ गए। मैं निढाल सी उनके सीने पर लेट गई। “अब बस भी करो !”
मैंने उनके होंठों को चूमते हुये कहा,”मार ही डालोगे क्या आज?” उसने मुझे अपने ऊपर से हटाया और मुझे खींच कर बेड के किनारे पर हाथ और पैरों के बल ऊँचा किया। तभी वही लडकी दोबारा आकर मेरी चिकनी हो रही योनि को अच्छी तरह से साफ कर गई। फ़िर गुरूजी ने खुद बेड के पास जमीन पर खडे होकर पीछे से मेरी चूत में अपना लंड डाल दिया. और फ़िर से जोर जोर से धक्के मारने लगे। मैं उसके लंड के हर धक्के के साथ चीख उठती। पूरे कमरे में मेरी उत्तेजना और दर्द मिश्रित आनन्द भरी आवाजें गूँज रही थी। ऐसी चुदाई मुझे पहली बार मिल रही थी। वरना जीवन तो अधिक से अधिक दस मिनट ही सम्भल पाते हैं। कोई घंटे भर तक इसी तरह चोदने के बाद उन्होंने अपने वीर्य से मेरी पूरी योनि को पूरी तरह से भर दिया। मैं बिस्तर पर निढाल हो कर गिर पडी, गुरूजी मेरे बदन पर ही कुछ देर तक पसरे रहे, फ़िर बगल में लेट गए। मेरी योणी से उनका वीर्य निकल कर सफ़ेद चादर को गीला कर रहा था। हलकी सी खटाक की आवाज आई तो मैं समझ गई कि मोनी बाहर चली गई है।
मैं गुरूजी से बेतहाशा लिपट गई। “आप मुझे अपनी छत्रछाया में ले लो ! मैं अब आपसे दूर नहीं जा सकती !” मैंने उनके होंठों को चूमते हुए कहा। उन्होंने मुझे बाँहों में भर कर करवट लेकर मुझे अपने सीने पर लिटा लिया, मैंने नीचे सरकते हुये उनके सीने को चूमा और सीने के बालों पर उँगलियों से खेलने लगी। फ़िर जीभ निकाल कर उनके चूचुकों पर फिराने लगी। फ़िर मेरे होंठ सरकते हुये नीचे की ओर फिसलने लगे, उनके लिंग के चारों ओर फैले घने बालों में अपने चेहरे को रख एक गहरी सांस ली और जीभ को उनके शिथिल पड़े लिंग पर फिराने लगी। उनकी उँगलियाँ मेरे बालों पर फ़िर रही थी। “क्यों मन नहीं भरा?”उन्होंने पूछा। “उम्म्म्मऽऽ ! नहींऽऽऽ !”
उन्होंने मेरे वक्ष और उनकी चोटियों को मसलते हुए अपने लिंग की ओर संकेत करते हुए पूछा,”कैसा लगा ये?” “बहुत अच्छा. जी करता है इसे अपनी योनि में ही डाले रखूँ !” मैंने उसके ढीले पड़े लिंग को वापस मुँह में डाल लिया। थोड़ी ही देर में वो फ़िर से अगली लड़ाई के लिए तैयार हो गया। उन्होंने उठ कर लाइट जला दी। मैंने शर्म से अपने चहरे को हाथों से ढक लिया। गुरूजी ने बिस्तर पर आकर मेरे हाथों को चेहरे पर से हटा दिया।
मैंने झिझकते हुये आँखें खोली तो उसका मोटा तगड़ा लिंग आँखों के सामने तना हुआ था। मुझे बिस्तर पर लिटा कर मेरी टांगों को मोड़ कर सीने से लगा दिया, अब एक तकिया लेकर मेरी क़मर के नीचे रख दिया, ऐसा करने से मेरी योनि उँची हो गई थी।
“देखना अब कैसे जाता है मेरा लिंग तुम्हारे अन्दर !” कह कर वो अपना लिंग मेरी योनि से सटा कर बहुत धीरे धीरे अन्दर करने लगे। मेरी योनि पूरी तरह फ़ैल गई थी। ऐसा लग रहा था मानो कोई मोटा बांस मेरी योनि में डाला जा रहा हो। पूरी तरह अन्दर करने के बाद इस बार बहुत तसल्ली से मुझे चोदने लगे।
मैं भी नीचे से क़मर उठा कर उनका साथ देने लगी। काफ़ी देर तक इसी तरह चोदने के बाद उन्होंने बिस्तर के किनारे पर बैठ कर मुझे अपनी गोद में बिठा लिया और चोदने लगे
फ़िर मुझे दीवार से सट कर जमीन से उठा लिया, मैंने अपनी टांगें उनकी क़मर पर बाँध दी और उनके लिंग के खूंटे पर झूल गई। कई तरह से मुझे चोदने के बाद वापस बिस्तर पर लाकर गुरूजी मेरी योनि में अपना रस डाल दिया। उसके बाद हम थक कर सो गए। सुबह छः बजे मोनी के उठाने पर मेरी नींद खुली। मैं नग्न अवस्था में ही सो रही थी। मैंने बगल में देखा, गुरूजी पहले ही उठ कर जा चुके थे। मैं थकान महसूस कर रही थी, मोनी ने सहारा देकर मुझे उठाया,”रात कैसी गुजरी?” मोनी ने पूछा। मैं उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा उठी, जो उसे समझाने के लिए काफ़ी था। मैंने आगे बढ़ने को कदम बढ़ाया तो मेरे कदम लड़खड़ा उठे। मोनी सहारा देकर मुझे बाथरूम की तरफ ले गई,”नहा लो, थकान उतर जायेगी !”
वो मुझे बाथटब में रगड़ रगड़ कर नहलाने लगी। गुलाब के फूलों से भरे टब में नहाते हुये मेरा मन ख़ुशी से भर उठा। मैं नहा कर बाहर निकली तो मुझे फ़िर से एक किमोनो औढ़ा दिया गया। मेरी क़मर में डोरी से किमोनो को बाँध दिया। सामने से पूरा खुला होने के कारण चलने पर मेरी नग्न टाँगें बाहर निकल आती थी। अब मुझे सहारे की जरूरत महसूस नहीं हो रही थी मगर मोनी ने मेरा एक हाथ थाम रखा था। कमरे में आते ही मानो पूर्व-नियोजित तरीके से एक युवती एक ग्लास में वैसा ही कोई तरल पदार्थ ले कर आई जैसा पिछली रात मैंने लिया था। इसे पीते ही मेरे बदन में एक नई ताजगी आनी शुरू हो गई। कुछ ही देर में मैं एक दम तारो-ताजा हो गई। अब मुझे लेकर मोनी एक हॉल में आ गई। हॉल के बीचों बीच एक बिस्तर सजा हुआ था। उस पर सुर्ख लाल रंग की रेशमी चादर बिछी हुई थी। बिस्तर के चारों ओर बारह कुर्सियों में आश्रम के सारे शिष्य बैठे हुए थे। बिस्तर के पास एक सिंहासन पर गुरूजी बैठे हुए थे।
मोनी मुझे लेकर चलते हुए बिस्तर के पास आकर रुकी, उसने मेरे किमोनो की डोरी को खोल दिया, किमोनो सामने से खुल गया, अन्दर कुछ नहीं पहना होने के करण टांगों के बीच का उभार सामने दिख रहा था। मोनी थोड़ी दूर हट गई, गुरूजी उठे और मेरे पीछे आकर मेरे खुले हुए गाऊन को मेरे कंधे से उतार दिया। मेरा गाऊन बदन पर से फिसलता हुआ नीचे गिर गया। मैं उन चौदह जोड़ी प्यासी अँखिओं के सामने बिल्कुल नग्न अवस्था में खडी थी।
गुरूजी ने मुझे कंधे से पकड़ कर उसी जगह पर चारों ओर घुमाया, फ़िर क़मर से मुझे थामे हुये धीरे धीरे चलते हुए एक एक शिष्य के पास से घुमाया। सब भूखी नजरों से मेरे बदन को निहार रहे थे। गुरूजी ने कहा,”ये है रुचिका ! आज से ये हमारे आश्रम को ज्वाइन कर रही हैं !” सबने ख़ुशी से तालियाँ बजाई।
“संस्था में शामिल करने के लिए जो जो रस्म होती हैं उन्हें आरम्भ किया जाए !” कहकर गुरूजी जाकर अपनी स्थान पर बैठ गए।
तभी एक लड़की एक चाँदी का कटोरा लेकर आई। मोनी ने उसे मेरे हाथ में देते हुये कहा,”इसे पी लो !” उस पात्र में गाढ़ा मक्खन की तरह कुछ रखा था। मैंने अपने होंठों से उसे लगा कर एक घूँट भरा तब पता चला कि वो वीर्य था। “यह हमारे आश्रम के सारे शिष्यों का वीर्य है, इसे पूरा पी लो !” मोनी ने कहा। मैंने घूँट भर भर कर सारा वीर्य पी लिया। “आज से तुम संस्था के किसी भी मर्द के साथ सम्भोग करने के लिए स्वतंत्र हो और कोई भी जब चाहे तुम्हें भोग सकता है। तुम इन्कार नहीं करोगी।” गुरूजी ने कहा।
अब मोनी ने मुझे बिस्तर पर बिठा दिया। दो लड़कियाँ दो खाली कटोरे लेकर आई। उन्हें मेरे स्तनों के नीचे रख कर मेरे चूचुकों को पकड़ कर उनमे से दूध निकालने लगी। ऐसा लग रहा था मानो मैं कोई औरत नहीं गाय हूँ जिसका दूध निकाला जा रहा है।
मेरी छातियों को वो तब तक दुहती रही जब तक आखिरी बूँद तक नहीं निकल गया। मेरी दोनो छातियाँ उनके मसलने की वजह से लाल हो गई थी और दुःख रही थी। दूध की कटोरियाँ लेकर वो युवतियाँ वहाँ मौजूद एक-एक आदमी के पास जाती और वो आदमी उस से कुछ दूध पीता। ऐसे करके सारे आदमियों ने मेरा दूध चखा। अब सारे शिष्य खडे हो गए और अपने अपने कपड़े उतार दिए। सिर्फ़ गुरूजी ही कपड़े पहने हुए थे। अपने चारों ओर इतने सारे खड़े लंड देख कर मेरा बदन सनसनाने लगा। सारे मर्द अपने अपने स्थान पर बैठ गए।
अब मोनी ने मुझे बिस्तर पर हाथों और घुटनों के बल झुका दिया। मैं एक ऐसी कुतिया लग रही थी जो गरमाई हुई हो। मेरी योनि में रस से छूटने लगा। तभी कुछ हुआ कि मेरा बिस्तर धीरे धीरे घूमने लगा। रफ्तार बहुत धीमी थी लेकिन इससे मैं बारी बारी हर आदमी के सामने से गुजर रही थी। तभी दो आदमी उठे और मेरे दोनों तरफ आकर खड़े हो गए। एक ने मेरे पीछे से बिना मुझे किसी तरह उत्तेजित किए अपना लंड एक झटके से मेरे अन्दर कर दिया। अगले झटके में तो उसका लिंग पूरी तरह मेरी योनि में समा गया और उसके अन्डकोष मेरी जांघों से टकरा गए। “आऽऽआअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्. …….ऊऊऊऊह् ह्ह्ह्छ !!” बस यही निकला मेरे मुँह से। फ़िर वो जोर जोर से धक्के मारने लगा। दूसरा मेरे सामने आया और मेरी थोढी को पकड़ कर मेरे चेहरे को ऊपर उठाया। मेरे चेहरे पर फैले हुए मेरे बालों को हटा कर नीचे झुक कर मेरे होंठों को एक बार चूमा, फ़िर वो खड़ा हो गया।
मेरी नजरें अगले कदम के इन्तजार में उसके चहरे पर जमी हुई थी। “इसे मुँह में लो ! उसने अपने लिंग की तरफ इशारा किया। मैंने देखा उसका तगड़ा लिंग मेरे होंठों से बस कुछ ही इंच दूरी पर है, मेरे होंठ अपने आप खुलते चले गए। उसने धीरे से मेरे सिर को थामते हुए अपने लिंग को मेरे मुँह में डाल दिया। मैंने देखा लिंग से भीनी भीनी सुगंध आ रही थी। अब दोनो तरफ से मेरी ठुकाई चालू हो गई। दोनों जोर जोर से मुझे ठोक रहे थे और सारे आदमी अपनी अपनी जगह पर नग्न बैठे हुए मेरी चुदाई देख रहे थे।
सबके हाथ अपने अपने लिंग को सहला रहे थे। जो मेरी योनि में ठोक रहा था उसने कोई १५ मिनट तक मुझे चोद कर अपना लिंग एकदम से अन्दर तक डाल दिया और उसके लिंग से निकली वीर्य की धारा मेरी योनि को भरने लगी। उसके इस तरह जोर से धक्का मारने के कारण सामने वाले का लिंग मेरे मुँह में अन्दर तक घुस गया, साथ ही उसका लिंग भी झटके मारने लगा। वो भी अपने वीर्य से मेरे मुँह को भरने लगा। मैं भी उनके साथ ही झड़ गई। दोनों ने अपना वीर्य मेरे अन्दर खाली करने के बाद अपने अपने लिंग बाहर निकाले, फ़िर मुझे उन दोनों के लिंग को चाट चाट कर बिल्कुल साफ करना पड़ा। दोनों अपनी अपनी जगह पर जा कर बैठ गए। मैं जोर जोर से हांफ रही थी। फ़िर दो और आदमी आकर पहले की तरह ही मेरी चुदाई करने लगे। दोनों काफ़ी देर तक ठोक कर मेरे अन्दर खाली हो गए। उनके बैठने पर दो और उठ कर उनकी जगह आ गए।
तीसरा दौर ख़त्म होते होते मेरे हाथों में और अपना बोझ सम्हाले रखने की ताकत नहीं बची और मैं मुँह के बल बिस्तर पर गिर पडी। अभी भी छः आदमी बचे थे। अब तीन आदमी उठ कर आए। एक मेरी बगल में आकर लेट गया। उसका खड़ा लिंग ऊपर की तरफ खड़ा हुआ था. बाकी दोनों ने मुझे बाँहों से पकड़ कर उठाया और मेरी टांगों को चौड़ा कर के उसके लिंग पर मेरी योनि को टिकाया, मेरी योनि से रस टपक कर बिस्तर पर गिर रहा था। एक धार उसके लिंग को भिगोती हुई नीचे जा रही थी।
कुछ देर तक मैं उस अवस्था में रही फ़िर मैंने अपना बोझ उसके लिंग पर डाल दिया और उसका मोटा लिंग मेरी योनि में घुसता चला गया। मैं अपने हाथ उसके सीने पर रख कर अपनी क़मर को धीरे धीरे ऊपर नीचे करने लगी मगर उसका तो इरादा ही कुछ और था। उसने मेरे चूचुकों को पकड़ कर अपनी ओर खींचा, मैं उसके सीने से सट गई। उसने मेरे बदन को अपनी बाँहों में समां कर सख्ती से अपने से लिपटा लिया। मेरी मोटी मोटी छातियाँ उसके सीने में पिसी जा रही थी। एक लडकी एक कटोरे में कोई तेल लेकर आई।
मोनी ने मेरे दोनो चूतड़ों को अलग करते हुए मेरी गाण्ड के छिद्र पर कुछ तेल गिराया और अपनी उँगलियों से अन्दर तक उसे अच्छी तरह लगाने लगी। “नहींऽऽईई.. ..प्लीज़ऽऽ ..यह..मुझ से …नहींईइ. ..होगाऽऽ॥ ” मैं कसमसा उठी। “मेरी फट जाएगीऽऽऽऽईई. प्लीज़ !!!… मैं सबको खुश कर दूँगी ऽऽऽई मगर वहाँ नहींऽ।…” मगर वहाँ मेरी विनती सुनने वाला कोई नहीं था।
एक जोर के धक्के से उस आदमी ने अपने लिंग का सुपाड़ा मेरी गाण्ड में डाल दिया। “आऽ…अऽऽऽआआआ आआआअह्ह्ह् ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्. ……म्माऽ॥अआआआ ” मैं चीख उठी। दो और जोर जोर के झटके लगे और पूरा लिंग मेरी गाण्ड के अन्दर था। मैं दर्द से दोहरी हुई जा रही थी।
मोनी पास आकर मेरे चेहरे को सहला रही थी और धैर्य रखने को कह रही थी। अपना पूरा लिंग अन्दर डाल कर वो कुछ देर रुका, फ़िर दोनों आगे और पीछे से मुझे चोदने लगे। अब तीसरे ने मेरे पास आकर मेरे चेहरे को एक ओर घुमा कर अपना लिंग मेरे मुँह में डाल दिया। इस तरह की यौन क्रीड़ा मैंने सिर्फ़ विदेशी नग्न फ़िल्मों में देखी थी या सुनी थी मगर आज यही मेरे साथ हो रहा था। तीनों ने जोर जोर से मुझे ठोकने के बाद मेरे तीनों छेदों में अपने अपने गर्म-गर्म वीर्य भर दिया
उनके बाद बाकी बचे तीनों ने भी मुझे उसी तरह चोदा। कोई दो-ढाई घण्टे की चुदाई के बाद मुझमें तो उठकर खड़े होने की भी ताकत नहीं बची थी, पूरा बदन बुरी तरह दुःख रहा था। मोनी और एक युवती ने आकर मुझे उठाकर गुरूजी के क़दमों में बिठा दिया, गुरूजी ने अपना लिंग निकाल कर मेरे सिर पर रखा, फ़िर उसे नीचे सरकाते हुए मेरे मुँह में डाल दिया। उनके लिंग को मैंने चूस चूस कर खल्लास किया। फ़िर सब उठ कर उस कमरे से निकल गए, सिर्फ़ मैं मोनी और एक लड़की बची थी। मोनी ने मुझे उठाकर मेरे बदन को पोंछा और मुझे मेरे कपड़े पहनाए, मुझे मेरी कार की पिछली सीट पर बैठा कर एक शिष्य मुझे मेरे घर तक छोड़ आया।
मेरे पति जीवन लाल काम पर जा चुके थे, इसलिए मैं बच गई। मैं घर आकर ख़ूब नहाई और खाना खाकर जम कर नींद ली। अपने बच्चे को बोतल से दूध पिलाया क्योंकि कुछ बचा ही नहीं था उसके लिए। शाम तक एकदम तरोताज़ा हो गई थी और बन-संवर कर माथे पर सिन्दूर और मंगलसूत्र को ठीक कर अपने पति के आने का इंतज़ार करने लगी

3 comments:

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